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27 Feb 2017 · 1 min read

“जीता हूँ मैं”

हर रोज़ बिखरता हूँ टुकड़ों में
फिर भी हर टुकड़े में जीता हूँ
नशा है ज़िन्दगी के ज़ाम में
फिर भी हर रोज़ ज़ाम पीता हूँ
हर बात बेबाकी से कहनी है मुझे
रिश्तों की खातिर लब सीता हूँ
कल ही मिली थी ख़ुशी मुझे
कहने लगी मैं कल बीता हूँ
अनुभव साझा करता हूँ अपने
न मैं क़ुरान हूँ न मैं गीता हूँ |

“सन्दीप कुमार”
२७/०२/२०१७

Language: Hindi
Tag: कविता
295 Views
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