जिंदगी न जाने किस राह में खडी हो गयीं
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/5e9350322c1edaa945e44ba40f495fac_7da88f424fd120cef521f89ad2aa08bd_600.jpg)
जिंदगी न जाने किस राह में खडी हो गयीं
ख्वाहिश जीनें से ज्यादा उम्मीद मौत की बडी हो गयीं
कतरा कतरा खुशी भी गम के सायें में मिलती है
मरनें जाऊं तो कमब्खत मौत भी नहीं मिलती।
खुदा तेरी रहमत है या कुछ रंजिश है मुझ से
तेरे अस्तित्व में भी जीनें को जिंदगी नहीं मिलती।