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2 Feb 2017 · 1 min read

जिंदगी की चार दिशाएँ

मेरे दोनों हाथ, दोनों पैर
बँट गए हैं चारों दिशाओं में
और मेरा शरीर लटक रहा है
त्रिशंकु की तरह
बीच अधर में

मुझे हर एक दिशा जान से प्यारी है
मेरे शरीर से भी ज्यादा

निर्णय नही ले पा रही हूँ मैं
चुन लूँ कौन सी दिशा
क्योंकि एक दिशा चुनने पर
जुडी रह पाऊँगी मैं
सिर्फ और सिर्फ दो ही दिशाओं से

पर मुझे तो
चारों ही दिशाएं
समान रूप से प्यारे हैं
और जुड़ीं रहना चाहती हूँ मैं
एक साथ इन सभी से

भले ही
इसके लिए मुझे
लटकना पड़े
त्रिशंकु की तरह
ताउम्र
यूँ ही

# लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’ (भोपाल)

Language: Hindi
Tag: कविता
407 Views

Books from लोधी डॉ. आशा 'अदिति'

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