ज़िन्दगी रोज़ मेरी ऐसे बदलती है यहाँ
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ज़िन्दगी रोज़ मेरी ऐसे बदलती है यहाँ
जैसे इक शाम किसी रात में ढलती है यहाँ
ओढ़कर ख़ुशियाँ मेरे दर्द भी कुछ यूँ निकले
जैसे दुल्हन कोई सज धज के निकलती है यहाँ
मेरी आँखों से मेरे दिल में कोई यूँ उतरा
जैसे शीशे पे कोई बूँद फिसलती है यहाँ
एक हसरत जिसे तुमने न हवा दी कोई
मेरी हर साँस में हसरत वही पलती है यहाँ
तू ने जो प्यार की इक शम्अ जलाई थी कभी
आज तक शम्अ वही प्यार की जलती है यहाँ
—शिवकुमार बिलगरामी