जलपरी
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/dc6676faaf5d343a4bd8ef09e914f512_f4724736cb9b2ba7728b27cc0a7a8385_600.jpg)
सच में होती जलपरी,या होती है ख्वाब।
लेकिन इसकी बात तो,करते कई किताब।।
दंतकथा में जलपरी,काल्पित जलीय जीव।
रूप लावण्य से भरा,है सौन्दर्य अतीव।।
कलाबाजियों से भरी,अद्भुत आकर्षक रूप।
बीच भँवर में तैरती,करतब करें अनूप।।
जल में रहती जलपरी,वस्त्र हीन है देह।
लेकिन जादू से भरा, उसका निर्मल गेह।।
होठ गुलाबी पंखुड़ी,लंबे-लंबे केश।
कई शक्तियों से भरी,मोहक अदा विशेष।।
लावण्य प्रभा माधुरी,सदा सिन्धु में लीन।
सिर से धड़ तक मानवी,दुम होती है मीन।।
जादूगरनी अप्सरा,नीलम- से दो नैन।
पावन स्नेहिल मद भरी,सहज सुरीले बैन।।
मधुर सुरों में जलपरी,गाती धुन में गान।
इंसा हो या देवता,भटके सबका ध्यान।।
पौराणिक हर ग्रंथ में,जलपरियों का साक्ष्य।
बहुत अनोखी साहसी,सर्वकला में दाक्ष्य।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली