जब काँटों में फूल उगा देखा
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जीवन में एक नई चाह दिखी
जब काँटों में फूल खिला देखा
जीवन में एक नई राह मिली
जब काँटो में फूल उगा देखा
ना उगता बबूल मरूस्थल में
कहाँ होता नीड़ परिंदो का
घायल की तड़प समझ आई
जब पाँव में सूल चुभा देखा
जंगल काँटो से है भरा पड़ा
कौन शिकायत करता है
हमको जब कष्ट मिला कोई
जीवन दुश्कर क्यों देखा
ये सच्च है कि इस जीवन में
सबको फूल नहीं मिलते
काँटो से जो हैं डरते “विनोद”
उनके गुलाब कहाँ देखा
स्वरचित:——
( विनोद चौहान )