जनता का भरोसा
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गैरत भी नीलाम कर दी
ज़मीर तक बेच दिया!
झूठी दौलत की हवस में
फ़कीर तक बेच दिया!
आख़िर तुम्हारी बातों पर
हम कैसे यक़ीन करें!
तुमने तो अपने भीतर का
कबीर तक बेच दिया!
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