चिट्ठी
कितनी सच्ची थी चिठ्ठी
कितनी अच्छी थी चिठ्ठी ।
सुख- दुख मेरे ले जाती थी
मन की अपने कह जाती थी ,
मेरे अपनों की गाथा
कुछ ही शब्दों में दे जाती थी ।।
रिश्तों का अहसास थी चिठ्ठी
कितनों का विश्वास थी चिठ्ठी ,
एक- दूजे से बाँधने वाली
कागज की एक डोर थी चिठ्ठी ।
संबंध मधुर बनाती थी
दूरियो को मिटाती थी ,
बिछुड़ जाते थे जो साथी
उनको वो मिलवाती थी ,
जाने कैसे पीछे रह गयी
फेसबुक और ई- मेल से चिट्ठी ।
आज चिठ्ठी इतिहास हो गयी
बीते दिनों की बात हो गयी ,
जीवन के सारे संस्कारों में
चिट्ठी ही बुलावा होती थी ;
पर अब न ही चिठ्ठी आती है
अब न ही चिठ्ठी जाती है ,
व्हाट्सएप के लघु संदेशों में
बातें सारी हो जाती हैं ।
बस ऐसे ही वो गुम हो गयी
सबकी प्यारी – प्यारी चिठ्ठी ।
कितनी सच्ची थी चिठ्ठी
कितनी अच्छी थी चिट्ठी ।।
डॉ रीता
आया नगर, नई दिल्ली- 47