चांद का पहरा

रात की चौखट पे ,चांद का पहरा होगा
सनम आँख में तब ख्वाब सुनहरा होगा।
क्यूँ हया आई है चेहरे पे ,परेशाँ क्यूँ हो
मिलन से ही ये रिशता ,और गहरा होगा।
खूबसूरती चाँद की आज कुछ नुमाया है
लगता है रात तेरी छत पे ठहरा होगा।
मयूर नाच उठे,घटायें देख तेरी जुल्फों की
कोई न माने ,धरा पे कही कोई सहरा होगा।
मरमरी जिस्म देख , धड़कने बढ़ने जो लगी
यकीनन पर्दा उस पर, एक इकहरा होगा।
चांद चुपके से बातें करता है चांदनी से
मानो न मानो, राज़ कोई गहरा होगा।
कितनी बार तारों ने ,इल्तज़ा की हक की
चांद मेरा हो , जानें कौन सा दहरा होगा।
ज़ला दी हमने आज, चाहतें सभी तेरी
दीवाली किसी की ,किसी का दशहरा होगा।
बस एक फरियाद मेरे दिल की न सुन पाये
कोई माने न कि ये हुस्न भी बहरा होगा।
सुरिंदर कौर