चन्द्रमाँ
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चन्द्रमा की
उपमाओं से सुसज्जित
मेरी सारी कवितायेँ
हंस रही हैं मुझ पर
क्यों कि-
आज फिर दिख रहा है
आकाश की गोद में
उंघता हुआ
खपरैल पर बैठे
कोई उल्लूक के नेत्र सा
भयावह
चाँद का वास्तविक रूप।।
*****
सरफ़राज़ अहमद “आसी”
चन्द्रमा की
उपमाओं से सुसज्जित
मेरी सारी कवितायेँ
हंस रही हैं मुझ पर
क्यों कि-
आज फिर दिख रहा है
आकाश की गोद में
उंघता हुआ
खपरैल पर बैठे
कोई उल्लूक के नेत्र सा
भयावह
चाँद का वास्तविक रूप।।
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सरफ़राज़ अहमद “आसी”