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25 Mar 2017 · 1 min read

गज़ल :– बेवजह लोग गंगा नहाते रहे ।।

तरही गज़ल :–
बेवजह लोग गंगा नहाते रहे ।
बहर :– 212–212–212–212

मीठे सपने सदा ही लुभाते रहे ।
रात ख्वाबों में भी मुस्कुराते रहे ।

*हम हमारे ही हाथों ठगाते रहे ।
भाग्य को ही सदा गुनगुनाते रहे ।

कर्म में न दिखाई कभी आस्था ,
हसरतों को गले से लगाते रहे ।*

हाथ अब हाथ धरने से क्या फायदा ,
सारे अवसर तुम्हीं तो गंवाते रहे ।

दाग दामन में था कोई समझा नहीँ ,
बेवजह लोग गंगा नहाते रहे ।

चाँद सूरज धरा ये रहे हैं सदा ,
लोग आते रहे , लोग जाते रहे ।

बदले कितने मुखौटे यहाँ रोज़ तुम ,
आइने से क्यों चहरा छिपाते रहे ।

अनुज तिवारी “इंदवार”
उमरिया
मध्य-प्रदेश

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