ग़ज़ल
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टीस मन से हमारे निकल जायेगी
रंग मसले का फिर ये बदल जायेगी
पेड़ पर जैसे पत्ते नये आतें हैं
होके पतझड़ बहारों में ढ़ल जायेगी
लोग कहतें हैं मुझमें सियासत नही
सोच उनकी ये सत्ता निगल जायेगी
दफ़्न होगी धुएँ में जो इंसानियत
उस धमाके से दुनिया दहल जायेगी
भूख से रोग से लड़ रहे थे महज़
ज़िन्दगी जंग में यूँ मसल जायेगी