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2 Mar 2017 · 1 min read

खोट (लघुकथा )

पिता और छोटे भाई का अंतिम संस्कार कर गाँव के लम्बे सफर से बदहाल लौटे रामचरण रिक्शे से उतरे ही थे कि पड़ोसी निलय आ गया.

“प्रणाम चाचाजी”

“खुश रहो बेटा.”

“चाचा जी , आपके घर जो हो रहा हैं वह ठीक नही हैं, मैं तो पुलिस बुलाने वाला था।”

“पुलिस ! ….क्यों ?”

“परसों आधी रात को सुहानी दीदी बचा लेने की गुहार कर रही थी और मेरे घर में आसरा मांग रही थी. बता रही थी कि भैया ने मारपीट की तो भाभी ने भाग जाने की सलाह देकर घर से बाहर भेज दिया.”

“लेकिन …”

“लेकिन क्या चाचाजी, आप ही बताइये कैसे रखता जवान लड़की को अपने घर में? और फिर जो अपनी सगी बहन के साथ ऐसा कर सकता है वो मेरे साथ …”

“लेकिन मुझे तो बहू ने फोन पर बताया कि सुहानी भाग गई है. इतनी दूर से मैं कर भी क्या लेता? इसी कारण तो जल्दी लौटा हूँ नहीं तो तेरहवीं के बाद ही वापिस आता.”

“आपका लिहाज ना होता तो दोनों को जेल में चक्की पिसवा देता।”

रामचरण जी अवसाद में घिरते बुदबुदा उठे ” मैंने अपने बच्चों में कभी कोई अंतर नहीं रखा।सदैव आपस में सम्मान करना ही सिखाया। फिर बच्चों में मूल्यों और संस्कारों के किले क्यों ढह रहे हैं ?क्या खोट रह गयी मेरी परवरिश में ?”

Language: Hindi
Tag: लघु कथा
1 Like · 258 Views
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