खोखला वर्तमान
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भारतीय परिवेश की सभ्यता और संस्कृति,
के साथ साथ,
विभिन्न आयामों में बहुआयामी
चहुंमुखी विकास उन्नत क्यों नहीं हो पाया,
क्या देश ने अपनी गुलामी के कारणों का अध्ययन नहीं किया,
लगता है हमारे बिखराव की वजह से ऐसा हुआ,
सामाजिक न्याय की प्रक्रिया ठीक नहीं रही,
अर्थव्यवस्था को लेकर आबंटन ठीक नहीं रहे,
समानता बंधुत्व संगठित करने वाले आधार पैदा ही नहीं हुए,
वर्ण-व्यवस्था के प्रयोग ने,
खंड खंड विभेदक आधार रख दिया,
स्पृश्य और अस्पृश्यता,
मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं को भूल गये,
और ऐसे कृत्य ही सभ्यता और संस्कृति बन गई,
पाप को ही पुण्य मानने लगे हो,
और पाप के दायरे के साथ,
अपवाद स्वरूप जगह छोड़ दी हो.
जैसे युगों का समायोजन.
सत् युग
त्रेता
द्वापर और
कलियुग,,,,
.
अधिकतर रहस्यदर्शी वैज्ञानिक थ्योरी तथा सिद्धांत देने वाले खोजी,
ऐसी किसी भी तरह की संभावनाओ को नकार देते है, वजह पौराणिक मान्यताओं का समावेश,
एक mythological proceedings.
.
त्रेता
और
द्वापर पर नजर डालें,
तो इस काल में क्या हुआ,,
सामाजिक व्यवस्था में
वर्ण-व्यवस्था और जातिये संरचना को मजबूती दी गई, मगर अंध-श्रद्धा /अंध-आस्था /अंध-विश्वास को आधार बना कर,,
उस और ध्यान आकर्षित होने न देना भी,
एक मूर्छा बेहोशी लोभ लालच, स्वर्ग-नरक का खौफ पैदा किया गया,
और समय समय पर उसे पक्का भी.
जो आज भी जारी है,
मानव जगत में मनुष्य को,
एक समान दृष्टि से न देखकर,
हुनरमंद कौम का तिरस्कार,
अतीत की गुलामी और भविष्य की परतंत्रता
की बेड़ियां है,
जिन्हें जल्द से जल्द न तोड़ा गया तो,
यह देश विकासशील देश से गरीब देश बन चुका है,
अगला पड़ाव, भुखमरी, कुपोषण, अंतर्कलह, अंतर्द्वंद, छ्द्म विनाश की ओर जायेगा.