क्या कहें
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क्या कहें कितना प्यार करते हैं।
जो भी है बे’शुमार करते हैं।
दिल को बस बे’क़रार करते हैं।
खवाह-मख़ाह इंतज़ार करते हैं।
कैसे आये न एतबार हमें,
जब यक़ीं बे’ शुमार करते हैं।
हौसला है कि टूटता ही नहीं,
कोशिशें बार – बार करते हैं।
ख़ैरियत वो कभी नहीं लेते,
फिर भी हम उनको तार करते हैं।
फ़ौज़िया नसीम “शाद”