कैसे कहें हम

दर्द जो अपनों से मिले,कैसे बताएं हम।
कैसे करें शिकवे गिले, कैसे छुपाएं हम।
क्यूं कोई करके गया, हमसे बेवफाई
सोचा था होगा मिलन,मिली तन्हाई।
क़ातिल अदाओं से ,कर गये जो दीवाना।
एक बार भी आकर,उसने न हाल जाना।
छुपी थी मक्कारी,कैसे उसकी बातों में
न जान पाये ,रोते हैं उठ उठ कर रातों में।
अजीयते सौ सही , इश्क़ तो हो ही गया
माना हमने, जाते जाते दामन भिगो ही गया।
सुरिंदर कौर