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15 Feb 2022 · 2 min read

कांग्रेस की ढहती इमारत …

जब इमारत के निवासी मान चुके ।
इसका अंजाम भी वो जान चुके ।
छोड़ कर जा रहे है बारी बारी सभी ,
जो अंधकार इसके भविष्य का देख चुके ।

ना जाने इमारत का मालिक क्यों है अंजान,
उसे क्यों नहीं दिखता यह जर्र जर्र मकान ।
कुछ दिमकों ने ,कुछ जंग ने डेरा है जमाया ,
दिखने लगेगा थोड़े समय में ही खंडहर समान।

इसके युवराज की तो बात ही मत पूछिए ,
यह बड़बोलापन और अधूरा सामान्य ज्ञान ।
क्या छवि बनाता है मन में यह सोचिए ।
हम तो कहेंगे इसे साफ शब्दों में पागलपन।

ऐसे ” पप्पू “के हाथों में देंगे यह जागीर !
कितने अयोग्य है यह तो है जग जाहिर ।
विनाश ही होगा पुरखो की अमानत का ,
मगर यह समझते है खुद को यूं ही माहिर।

संस्कार ,संस्कृति और सभ्यता नींव में थी ,
वोह बिलकुल ही हिल चुकी है ।
देशभक्ति और समाज कल्याण की भावनाएं,
रंगहीन और चमक लगभग मिट चुकी है ।

बस ! अब यूं समझ लो इसका अंत आ चुका,
इसे बचाना अब बहुत ही कठिन होगा ।
ना मिला इसे यदि कुशल और योग्य नाविक ,
तो इस कश्ती का डूबना निश्चित होगा ।

योग्य ,कुशल और अनुभवी तो बहुत है इसमें,
मगर उनकी कोई कद्र ही नहीं ।
जाने किन परदों के पीछे छुपा रखा है उनको ,
जैसे उनका कोई अस्तित्व ही नहीं।

एक विदेशी महिला ,उसकी बेटी और बेटा ,
बस ! यही उस इमारत के मालिक हो गए।
यही तो है ” आला कमान” हां ! बस यही ,! ,
और बाकी तो इनके दास हो गए ।

यह दुर्भाग्य बदा था देखना इस इमारत का ,
जिसने अपने जीवन में सुनहरे दिन देखे ।
हाय ! कभी नहीं सोचा था इस अंजाम का ,
जो इसके प्रारब्ध की कलम ने लिखे ।

Language: Hindi
Tag: कविता
2 Likes · 6 Comments · 279 Views

Books from ओनिका सेतिया 'अनु '

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