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19 Sep 2022 · 1 min read

कस्तूरी मृग

कस्तूरी मृग

वन सुशोभित हो रहा
कस्तूरी की सुगंध से
स्वयं बावला हो रहा
कस्तूरी मृग भी इस गंध से

सब माया का फेर है
अनजान अपने ही अंग से
नाभि बीच कस्तूरी बसे
वह ढूँढता वन में उमंग से

भूख प्यास सब भूल गया
मृगतृष्णा सी इस जंग से
वन वन मारा फिर रहा
जो बहती उसके अंग से

थक हार कर गिर पड़ा
पर दूर नहीं था सुगंध से
हवा ने साँसों में ताजगी भरी
फुर्ती दिखी फिर अंग अंग से

जगत बैरी बना बैठा था
नादान दुनियावी रंग से
घात लगा मारा गया
बेचारा कस्तूरी के प्रसंग से

– आशीष कुमार
मोहनिया, कैमूर, बिहार

1 Like · 79 Views
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