कविता: सपना

कविता: सपना
~रात सपनों में आई वो,
~फूलों सी मुस्काई वो।
~पूछा जो हाल उसका,
~मुझसे थोड़ा शर्माई वो।।
रात सपनों में आई वो ….
~नैना बड़े कटीले उसके,
~बाल गोल घुंघरीले उसके।
~नाक उसकी हीरे जड़ी,
~होंठ जैसे गुलाब पंखुड़ी।
~कानों में सोने की बाली,
~गालों से मलाई वो।।
रात सपनों में आई वो …
~पास बैठी अहसास हुआ,
~जन्नत के मैं पास हुआ।
~मीठी बोली मैना जैसी,
~खुशियों की रैना जैसी।
~हाथ उसके आलेखन जैसे,
~जिनमें मेंहन्दी लगाई वो।।
रात सपनों में आई वो …
~रेशमी कपड़े मोती जड़े,
~जैसे पूर्णिमा में सितारे जड़े।
~जब चली वापिस मुड़कर,
~मोरनी सी आकाश में उड़कर।
~रोका बहुत पर ना रुकी,
~ना फिर लौटकर आई वो।।
रात सपनों में आई वो ….
~रात सपनों में आई वो,
~फूलों सी मुस्काई वो।
~पूछा जो हाल उसका,
~मुझसे थोड़ा शर्माई वो।।
नोट:- इत्तेफाक से मेरी पत्नी जी नाम भी सपना ही है।