कल और आज
कल और आज (भोजपुरी कविता)
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एगो वानर दूगो वानर , देखनी वानर तीन।
विचारधारा में गांधी जी के,रहलन तीनों लीन।।
रहलन तीनों लीन , बुराई बुरा बतावें।
देखीं सुनीं ना बोलीं , हरदम इहै जतावें।।
धीरे – धीरे परिवर्तित , भईल समय के धार।
तीन से बढ़के आज होगइलें, देखीं वानर चार।।
देखीं वानर चार , ऊ सबके मुंह चिढावे।
बढल प्रभाव मोबाइल , सबका आज दिखावे।।
खतम भइल ना आज बुराई, बढल ओकर प्रभाव।
साँच झूठ के खेल चलत बा, साँच के बा आभाव।।
साँच के बा आभाव , बुराई बढले. जाता।
बुरा करे जे आज , महलो ओकरे पीटाता।।
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✍✍पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’