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20 Jul 2019 · 1 min read

कब मैंने चाहा सजन

कब मैनें चाहा सजन, मिले नौलखा हार।
देना है तो दिजिए, थोड़ा समय उधार।।

समय तुझे मिलता नहीं,पल भर बैठे पास।
कैसे समझोगे भला, मैं क्यों हुई उदास।।

रूठी हूँ मैं इसलिए, मिले तुम्हारा प्यार।
हीरे मोती का नहीं, हो बाँहों का हार।।

तुम बिन फीका साजना, ये सोलह शृंगार।
तुम पर पड़ते ही नजर, बढ़ता रूप निखार।।

तुम बिन लगता है सजन,सुना-सुना घर-द्वार।
मृत्यु तुल्य जीवन लगे,साँसे लगती भार।।

-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली

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