ऐ ज़ालिम….!
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देकर धक्का अंधेरे में,
उन्होंने रौशनी से हाथ मिला लिया।
दिल तोड़कर हमारा,
उन्होंने हमें ये कैसा सिला दिया?
हम तो दुआओं का मीठा अमृत मांगते थे उनके लिए रब से,
उन्होंने अपनी तरफ़ से हमें बद्दुआओं का कड़वा ज़हर पिला दिया।
ऐ ज़ालिम!
ये कैसा दगा किया?
✍️सृष्टि बंसल