माँ-बाप का किया सब भूल गए
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
दोहा छंद ! सावन बरसा झूम के ,
गंगा- सेवा के दस दिन (सातवां दिन)
सैनिक के संग पूत भी हूँ !
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
ये ज़िंदगी भी ज़रुरतों से चला करती है,
अगर हौसला हो तो फिर कब ख्वाब अधूरा होता है,
सहचार्य संभूत रस = किसी के साथ रहते रहते आपको उनसे प्रेम हो
कितनी शिद्दत से देखा होगा मेरी नज़रों ने
कैमरे से चेहरे का छवि (image) बनाने मे,
ज़िंदगी में बेहतर नज़र आने का