इस क्षितिज से उस क्षितिज तक देखने का शौक था,
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इस क्षितिज से उस क्षितिज तक देखने का शौक था,
पर मेरी मां का आसमा तेरे आंगन की नाप का था
कोई पहाड़ ना था लांघने को, लांघ सकती,ये घर की डेहरियां
खंभों की आड़ में देख पाती न थी, गांव की लहरियां
इस क्षितिज से उस क्षितिज तक देखने का शौक था,
पर मेरी मां का आसमा तेरे आंगन की नाप का था
कोई पहाड़ ना था लांघने को, लांघ सकती,ये घर की डेहरियां
खंभों की आड़ में देख पाती न थी, गांव की लहरियां