इधर उधर न देख तू
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इधर-उधर न देख तू मेरी तरफ़ नज़र उठा
गुनाह मैंने क्या किया गुनाह तो मुझे बता
समझ रहा हूँ मैं तेरी ये ग़मज़दा ख़ामोशियाँ
ख़फ़ा-ख़फ़ा है तू मगर कभी-कभी तो मुस्कुरा
ज़माने से पड़ा है ठप वफ़ा का कारोबार भी
वफ़ा की बात कर कभी ये कारोबार कुछ बढ़ा
कभी तो मालामाल कर ग़रीब को ख़ुशी से तू
जुबाँ से ‘हाँ’ न कह अगर तो सिर हिला के ‘हाँ’ जता
निबाह गर न दोस्ती तो दुश्मनी को राह दे
मना के मैं हूँ थक गया मुझे न और अब थका
— शिवकुमार बिलगरामी