इजहार ए इश्क
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हसरतों को अपनी दबाकर न रक्खों,
लबों पे खामोशी यूं सजाकर न रक्खों,
कबूल गर तुमको है मुझसे मोहब्बत,
तो मोहब्बत को अपनी छुपाकर न रक्खाें।
इकरार मुझसे कर लो चाहत का अपनी,
दिल की धड़कनों को धड़का कर न रक्खों,
इजहरें इश्क माना डर लगता बहुत है,
एहसासों को अपने डराकर न रक्खाें।
हसीन लम्हों की थोड़ी नज़ाकत तो समझो,
नजरों को अपनी झुकाकर न रक्खों,
सिमट जाओ पूरी अब बाहों में हमारी,
हया को तुम अपना बनाकर न रक्खों।
@साहित्य गौरव