आस्तीक भाग-दो

आस्तीक भाग – दो
ई डी एम एस देश के सबसे बड़ी बीमा कम्पनी का अपनी सेवाओं को उत्कृष्ट बनाने का एक प्रोजेक्ट जिसमें अमूमन उन अधिकारियों कि नियुक्ति कि जाती है जिनको मुख्य आवश्यक जिम्मेदारियों के काबिल नहीं समझा जाता सौभाग्य या दुर्भाग्य कहे अशोक को अपनी सेवा काल के अंतिम पंद्रह वर्षों में ऐसे ही बिभगो में पदस्थापना मिली जहाँ से किसी का कुछ लेना देना नहीं रहता ना ही किसी भी प्रकार के प्रवंधकीय ,प्रशासनिक एव वित्तीय अधिकार नही होते ।
अशोक कि पदस्थापन कुछ दिनों के लिए गोरखपुर मंडल के अंतर्गत ई डी एम् एस विभाग में हुई जब अशोक कार्यभार ग्रहण करने आया उस समय उससे श्रेणी नीचे अजय यादव उस विभाग में पहले से कार्यरत थे से मुलाकात हुई ।
अशोक के कार्य भार ग्रहण करने के बाद अजय यादव मातहद द्वारा अशोक को आदेशित किया (यूं आर हेयर बाई पोस्टेड एट ई डी एम् एस सेंटर बिकाज थीस इस वेल इन नालेज आफ हायर ऑफिसर थैट यू आर दिस्टर्बिंग एलिमेंट ऑफिस विल बी डिस्टर्ब इन योर प्रेजेंस ) ।।
मैंने बिना किसी मान अपमान के ख्याल या चिंता किए अजय यादव को धन्यवाद दिया आश्चर्य इस बात का था कि हम सबके बिभाग प्रमुख महेश श्रीवास्तव अजय यादव के इस व्यवहार पर कुछ नहीं कहा ।
अशोक कि नियमित दिनचर्या यह थी कि में लगभग सवा नौ बजे मण्डल कार्यालय जाता और उपस्थिति दर्ज कर एक डेढ़ घंटे उपरांत ई डी एम् एस सेंटर चला जाता वहीं से में कार्यलय समयउपरांत घर चला आता।।
मण्डल कार्याल लगभग एक डेढ़ घंटे रहता कहावत है न कि जिसका कोई नहीं उसका ईश्वर होता है मेरे साथ भी चरितार्थ था ई डी एम् एस सेंटर पर कार्य ठिके पर हुआ करते है मुख्य ठिकेदार (हिबेट एंड पैकर )एवं सब वेंडर न्यूजन) था सेंटर पर न्युजन के दो अधिकारी शिशिर सिन्हा एवं रतनेश श्रीवास्तव पदस्थापित थे सेंटर पर अशोक का मुख्य कार्य डाक्यूमेंट् के स्कैन कि गुणवत्ता को जांचने की थी ।
सेंटर पर बैठने के लिए एक प्लास्टिक कि कुर्सी उपलब्ध थी और पंखा किसी तरह चलता जहां भारत कि सबसे बड़ी वित्तीय बीमा कम्पनी के अधिकारी के रूप में कार्य करना पड़ता अशोक ने सदैव निष्ठा एवं पूर्ण समर्पण से कार्य किया कभी भी सुविधाओं एवं पद प्रतिष्ठा कि कोई चिंता नहीं थी।
अशोक नेअपने अड़तीस वर्षों की सेवा काल में अपने विभिन्न प्रयासों से बीस हज़ार से अधिक हतास निराश युवकों को आत्म निर्भर बनाने एवं जिम्मेदार नागरिक बनाने में का एक अति महत्वूर्ण सामाजिक कार्य किया जिस उपलब्धि पर अशोक के साथ साथ समाज को भी गर्व है और उस प्रत्येक नौजवान का हताश निराश समय और वर्तमान अशोक को आत्मसंतोष देता है यह कार्य अशोक से कैसे संभव हुआ सोचता है तो कभी कभी खुद पर विश्वास नहीं कर पाता।।
अशोक स्वय भी बहुत बिपरीत परिस्थितियों में संघर्षों से उद्देश्य पथ पर मंद गति से बढ़ रहा था।
अशोक कही भी रहता किसी भी हताश निराश को अपनी जगह रख कर देखता और तब उसके लिए मार्ग खोजता और ईश्वर कि कृपा मिल भी जाता।
ई डी एम् एस सेंटर पर भी ऐसा ही हुआ वहाँ वेंडर के यहां चालीस पचास नौजवानों की टीम थी जिनके साथ मैने अच्छा संवाद एव भावनात्मक रिश्ता विकसित कर लिया मैं बहाने खोज खोज कर वहां स्वस्थ एव खुशनुमा वातावरण बनाने की पुरजोर कोशिश करता कभी किसी महापुरुष के जन्म दिवस पर तो कभी किसी राष्ट्रीय उपलब्धि पर सेंटर पर सदैव कुछ न कुछ कार्यक्रम होते प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति जी का जन्म दिन हर साल बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता वहां का वातावरण इतना उल्लासपूर्ण बन गया कि मण्डल कार्यालय अच्छा ही नही लगता था अशोक को।
मंडल कार्यालय का वातावरण वहां कि अपेक्षा बहुत प्रतिस्पर्धा प्रतिद्वंतिता और तुक्षता से परिपूर्ण था जो कम से कम अशोक को रास नही आता ।।
शिशिर सिन्हा एव रत्नेश श्रीवास्तव भी बेहद जिम्म्मेदार एव संजीदा अधिकारी न्यूजन के थे उनके द्वारा भी अशोक को पूरा समर्थन सहयोग प्राप्त होता रहता।
चूँकि मण्डल कार्यालय से कुछ ही दूरी पर सेंटर था जिसके कारण वे पॉलिसीधारक शाखा से शिकायत या संतोष जनक सेवा न मिलने पर मण्डल कार्यालय जाते और वहां से लौटते समय सेंटर पर भारतीय जीवन बीमा निगम का बोर्ड देख रुक जाते और अशोक से अपनी शिकायत दूर कराने की गुहार करते लगभग ढाई हजार ऐसे ग्राहक मेरे कार्यकाल में सेंटर पर आए जिनकी समस्यओं का निस्तारण हुआ आज भी अशोक से लगभग सभी जुड़े हुए है ।
अशोक को पूरा यकीन हो चुका था कि ईश्वर जो कुछ करता है अच्छा ही करता है या जो भी घटित होता है वह नियति का निर्धारण है और उसे स्वीकारते हुए नियति को अपने सद्कर्मो से स्वय के उपकार हेतु प्रेरित करना चाहिये नियति अदृश्य है लेकिन उसके लिए सब दृश्य है वह सृष्टि के प्रत्येक प्राणी को उसके आचरण और कार्य जो उसके द्वारा प्रतिपादित किये जाते है अंतर्मन एव वाह्य कर्तव्यों को निहारती है तदानुसार सम्बंधित प्राणि के लिए स्वय का निर्धारण करती है जो सत्य अशोक के साथ भी काल समय के साथ साथ चल रहा था।
अशोक दुनियां से निश्चिन्त अपने कार्यो दायित्वो के साथ पूरे उत्साह से जीता जा रहा था।
एक दिन अशोक सेंटर पर बैठा ही था कि मेरे मोबाइल कि घंटी बजी अशोक ने फोन उठाया आवाज आई विकास बोल रहा हूँ विकास निगम बीमा कम्पनी कि नगर शाखा एक इलाहाबाद से अशोक बोला बोलिये विकास जी ,विकास निगम साहब ने बोलना शुरू किया यार आडिट कि एक रिकवरी है पचहत्तर हज़ार कि मैंने कहा आप गोरखपुर मण्डल कार्यालय के सचिवालय के माध्यम से वरिष्ठ मण्डल प्रबंधक से बात करिए विकास निगम ने कहा कि वहां बात हो चुकी है कोई सुन नही रहा है यार अपने लेबल से करा दो रिकवरी ।
विकास निगम साहब से अशोक का कोई बहुत पुराना रिश्ता नही था सिर्फ क्षेत्रीय कार्यालय प्रशिक्षण केन्द्र पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरानऔपचारिकता में एक दूसरे का मोबाइल नंबर ले लिये थे।।
अशोक ने निगम से आडिट सम्बंधित सभी प्रपत्रों को मांगा जिसे उन्होंने तुरंत भेज दिया पेपर देखने से पता चला कि कोई सिंह लड़का जिसको परिवीक्षा धीन
विकास अधिकारी के रूप में नियुक्ति मिली थी और उसने नौकरी छोड़ दी उंसे दिये गए सुविधाओ की ऑडिट रिकवरी होनी है जैसे वाहन आदि।।
अशोक विकास निगम से ही पूंछ लिया कि यह रिकवरी कैसे गोरखपुर से होगी विकास निगम ने बताया कि अनुज सिंह के पिता कि राजघाट थाने नियुक्त है उन्ही से संपर्क करना है।।
अशोक तुरंत थानाध्यक्ष राजघाट को फोन मिलाया उधर से कड़क आवाज़ आयी मैं राज घाट थाना इंचार्ज खान बोल रहा हूँ मैने राजघाट में सिंह साहब के नियुक्ति के विषय मे पूछा तब उन्होंने बताया कि उनका ट्रांसफर बस्ती किसी ग्रामीण थाने में हो चुका है यहां से अब कोई मतलब नही है उनका परिवार राजघाट थाने की पुलिस कालोनी में रहता है आप चाहे तो संपर्क कर सकते है।।
अशोक तुरंत राज घाट पुलिस कॉलोनी गया मगर वहाँ किसी से मुलाकात नही हुई अशोक पुनः राजघाट थाना इंचार्ज खान साहब से सम्पर्क किया उन्होंने बताया कि आप आई जी साहब से बात करे ।।
उस समय आई जी मीणा साहब थे मीणा लोगो का अशोक के परिवार से बहुत भवनात्मक रिश्ता है अशोक के पिता जी को राजस्थान में मीणा समुदाय के लोगो ने बहुत सहयोग किया था अशोक तुरंत आई जी मीणा साहब को फोन मिलाया और उन्होंने एक जिम्म्मेदार अधिकारी एव पुलिस की उत्कृष्ट छवि के अनुसार तुरंत फोन उठाया ध्यान से मेरी बात सुनी और बोले अशोक जी मै वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक लव कुमार से बोल दूंगा आप उनसे मिल लजियेगा।।
लव कुमार अमरोहा के रहने वाले तेज तर्रार अफसर थे बहुत प्रतीक्षा के बाद उनसे मुलाकात हुई उन्होंने कहा कि इसमें पुलिस मोहकमा कहां आता है यह आपके विभाग का मामला है फिर भी मैं जो कुछ सम्भव होगा करने की कोशिश करूंगा अशोक कार्यालय लौट आया ।
दूसरे दिन जब अशोक सेंटर अपने नियमित समयानुसार पहुंचा तो देखा एक भद्र महिला जो किसी बड़े परिवार की बेटी और बहू जैसी थी रौबीला व्यक्तित्व पहले से बैठी थी अशोक के पहुँचने पर उन्होनें बताया कि वह अनुज कि माँ है और आडिट रिकवरी के बावत मिलने आई है।।
बात बात में उन्होंने बताया कि वह देवरिया के कसिली की बेटी है नृपेंद्र मिश्र उनके गांव के मूल निवासी है एव पड़ोसी है ।।
कसिली देवरिया के सलेमपुर तहसील के में सतारांव रेलवे स्टेशन के पास है जहां के नृपेंद्र मिश्र जी है जिनके परिवार को डिप्टी साहब का परिवार कहा जाता है सत्यता यह भी है कि नृपेंद्र मिश्र जी शायद कभी अपने पैतृक गांव गए हो लेकिन कम से कम पूर्वांचल का प्रत्येक व्यक्ति जब अपना परिचय देता है तो अपने समाज या जावार के रसूखदर व्यक्ति को बता कर अपना परिचय देता है अशोक के लिये नई बात नही थी।।
इस प्रकार से आय दिन रूबरू होना पड़ता था अशोक के लिए नृपेंद्र के नाम से फर्क पड़ता था क्योंकि पूरे सेवाकाल में उसे याद नही कितने लोग उनके नाम से अपने को संबंधित बताते और मुझ जैसे बहुत छोटे हैसियत का इंसान उन लांगो की समस्याओं का निस्तारण करता या करवाता बहुत बार जलालत भी झेलनी पड़ती जबकि वास्तविकता यह भी थी कि अशोक स्वय कभी नृपेंद्र मिश्र से नही मिला अशोक को वे जानते भी नही थे नृपेन्द्र जी अाई ए एस रहते हुए बड़े बड़े जिम्मेदार पदो को सुशोभित करते हुए प्रधान मंत्री के व्यक्तिगत सचिव थे अतः उनको लगभग सारा देश जानता है।
अशोक सिर्फ इतना जानता था कि जब नृपेंद्र जी स्कूटर इंडिया लखनऊ में पदस्थापित थे तब उसके बड़े भाई उनके पास नौकरी मांगने गए थे वहां से लौटकर बड़े भाई ने नृपेंद्र जी के व्यक्तित्व का जो विवरण बताया उससे अशोक के मन मे नृपेन्द्र मिश्र के मन मे आदर सम्मान का स्थाई भाव कर गया उसके बाद अशोक नृपेंद्र मिश्र के विषय मे मिडिया के माध्यम से ही जानता था कभी वह कल्याण सिंह के साथ उनके विश्वास पात्र रहे तो कभी उन पर सी आई ए को लेकर आरोप मढ़े गए नृपेंद्र मिश्र ने शायद ही अपने पैतृक गांव के किसी व्यक्ति को अपने पद के प्रभाव से कोई लाभ दिया हो नृपेंद्र मिश्र के स्वभाव में राष्ट्र प्रथम और राष्ट्र सम्पूर्ण उनके गांव परिवार में सम्मिलित था जो विरले प्रभवशाली लांगो के लिए संभव है दूसरी बात नृपेंद्र जी बेहद पारदर्शी एव ईमानदार प्रशासक रहे है अतः उनसें कभी कोई जान पहचान न होने पर भी जो कोई भी उनका नाम लेकर अशोक के पास आता उसका कार्य अशोक अपने छोटे से हैसियत पद अधिकार में प्राथमिकता से करता।।
उस भद्र महिला ने जब नृपेंद्र जी का नाम लिया अशोक के लिये करो या मरो का प्रश्न खड़ा हो गया जब भी ऐसी स्थिति आती अशोक के लिए यही स्थिति रहती पुनः उस भद्र महिला ने बताना शुरू किया कि उसके चार पुत्र है जिसमे अनुज बड़ा है बाकी तीन अध्ययन रत है जिनकी पढ़ाई का खर्च और पति का खर्च मेरा गोरखपुर का खर्च यानी पुलिस जो बदनाम बहुत है मगर हाथ कुछ नही बेटों कि पढ़ाई किसी तरह से चल रही है अब ऑडिट रिकवरी क्या जाने अनुज इंजीनियरिंग करने के बाद बहुत मुश्किल से जीवन बीमा में विकास अधिकारी कि नौकरी पाया इलाहाबाद अकेले रहता था।।
काम का दबाव भाग दौड़ उसी दौरान उसका एक अनुसूचित लड़की से प्रेम संबंध हो गया उस लड़की ने पहले तो बहुत नैह स्नेह दिखाए बाद में विवाह के लिए दबाव बनाने लगी बेटे को जब पता चला कि जिससे वह प्यार करता वह दलित परिवार की लड़की है उसकी हिम्मत अपने माता पिता सच्चाई बताने की नही हुई और वह ना तो विभागीय कार्य कर पाता ना ही अपने प्यार को स्पष्ट कुछ भी कह पाता परिणामतः आवश्यक स्थायीकरण कि शर्ते वह सारे विकल्प मिलने के बाद भी पूर्ण नही कर पाया जिसके कारण जीवन बीमा कि नौकरी जाती रही और जब इसके प्यार दलित लड़की को पता चला कि उसकी आशाओं का हीरो बेरोजगार हो गया तब उसने भी विवाह करने या हर्जाना देने के लिए मुकदमा कर दिया है।।
मेरे पति की परेशानी यह है कि वे अपनी नौकरी करें या बेटे के मुकदमे को देंखे या उसकी ऑडिट रिकवरी जमा करें अशोक को उस भद्र महिला कि एक एक बात सत्य लग रही थी क्योंकि अशोक ने व्यक्तिगत भी पूरे प्रकरण को अपने स्तर से जांच की थी अब अशोक यह नही समझ पा रहा था उसे क्या करना चाहिये मैने बड़े आदर भाव से उस महिला को विदा किया और सोचने लगा कि माता पिता कि आशाओं पर तुषारापात का क्या परिणाम होता होगा ।
कुछ दिन बाद मुझे अनुज के पिता जी ने बताया कि इलाहाबाद जीवन बीमा निगम के अधिकारियों से बात हो चूंकि है किस्तों में ऑडिट रिकवरी करना है और पच्चीस हजार जमा भी कर दिए है ।।
लेकिन अशोक के लिये सिर्फ यह विकल्प तलाशना था कि शेष वकाय विभाग को स्वतः माफ कर देनी चाहिये अशोक के प्रायास का नतीजा निकलने से पूर्व ही अशोक का का स्थानांतरण बस्ती हो गया जो अशोक के साथ अन्याय कि हद थी अनुज के पिता बस्ती के किसी ग्रामीण थाने में नियुक्त थे और अशोक बस्ती शहर में इसके अतिरिक्त दोनों कि स्थिति में कोई फर्क नही था।।
अशोक भी स्थानांतरण में खास बात यह थी कि जो अधिकारी सिर्फ एक वर्ष पूर्व पदोन्नति के साथ महाराज गंज पदस्थापित हुआ था सारे नियम कानून को दर किनार कर सिर्फ इसलिये उसकी जगह पर नियुक्त किया गया क्योकि वह विभाग में एस टी एस सी फोरम का नेता था ।।
यानी अशोक और अनुज के पिता जी एक ही प्लेटफार्म पर आ खड़े हुये।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।