आपका स्नेह पाया, शब्द ही कम पड़ गये।।
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आपका स्नेह पाया, शब्द ही कम पड़ गये।।
मैं अकिञ्चन तुच्छ सा नर भीड़ में खोया हुआ।
शून्य हूँ अस्तित्व रीता मान कर सोया हुआ।
मान देने के लिए ही आप आकर अड़ गए।
आपका स्नेह पाया, शब्द ही कम पड़ गये।।
दिग्भ्रमित गंतव्य है अवरूद्ध है हर पथ मेरा।
भाग्य भी कहने लगा था कुछ नहीं कोई तेरा।
आप सब बनकर स्नेही विधि से मेरे लड़ गये।
आपका स्नेह पाया, शब्द ही कम पड़ गये।।
रक्त का रिश्ता नहीं है नाहि कोई वास्ता।
पर हमारे जिन्दगी का आपही हैं दास्ताँ।
आप मेरे दु:ख के पग शूल बनकर गड़ गये।
आपका स्नेह पाया, शब्द ही कम पड़ गये।।
बोल दूं आभार वह सामर्थ्य मुझमें है नहीं।
मोल लूं यह प्यार वह सामर्थ्य मुझमें है नहीं।
दंभ के सब भाव पतझड़ पात बनकर झड़ गये।
आपका स्नेह पाया, शब्द ही कम पड़ गये।।
आपका अपना
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’