Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
15 Sep 2016 · 4 min read

आकाश महेशपुरी के बासठ दोहे

आकाश महेशपुरी के बासठ दोहे-

1-
कलयुग के इस दौर मेँ, बस हैँ दो ही जात।
एक अमीरी का दिवस, अरु कंगाली रात॥

2-
कौन यहाँ है जानता, कब आ जाए अन्त।
चलना अच्छी राह पर, कर देँ शुरू तुरन्त॥

3-
मौसम मेँ है अब कहाँ, पहले जैसी बात।
जाड़े मेँ जाड़ा नहीँ, गलत समय बरसात॥

4-
यारी राजा रंक की, या दोनोँ की प्रीत।
अक्सर क्योँ लगती मुझे, ये बालू की भीत॥

5-
ध्यान रखे जो वक्त का, रहता है खुशहाल।
जो इससे है चूकता, दुख भोगे तत्काल।।

6-
कुछ कहने से पूर्व ही, कर लेँ सोच विचार।
ऐसा ना हो बाद मेँ, बढ़ जाए तकरार।।

7-
हिन्दू-मुस्लिम से बड़ा, अपना भारत देश।
ये लड़ते तो देश के, दिल को लगती ठेस।।

8-
यह भी तो अच्छा नहीँ, भरना केवल पेट।
कर लेते हैँ जानवर, भी भोजन से भेँट॥
….
9-
कैसी उसकी सोच है, कैसा है इंसान।
छोटी-मोटी बात से, हो जाती पहचान॥

10-
मौसम तो बरसात का, किन्तु बरसते नैन।
सूखी सूखी ये धरा, पंक्षी भी बेचैन।।

11-
थोड़ा कम भोजन करेँ, काम करेँ भरपूर।
निर्धनता इससे डरे, रोग रहेँ सब दूर।।

12-
रूप सलोना हो भले,मन मेँ बैठा मैल।
ऐसे मानव से भले, लगते मुझको बैल।।

13-
यदि बूढ़े माँ-बाप को, पुत्र करे लाचार।
उससे पापी कौन है, तुम ही बोलो यार।।

14-
आग लगे जब गाँव मेँ, संकट हो घनघोर।
कितनी छोटी सोच है, खुश हो जाते चोर।।

15-
आँखोँ मेँ बादल नहीँ, दिल के सूखे खेत।
हरियाली गुम हो चली, दिखती केवल रेत॥

16-
खाता है जो धन यहाँ, बिना किये कुछ काम।
माफ उसे करते नहीँ, अल्ला, साईँ, राम।।

17-
ये हैँ शत्रु समाज के, ताड़ी और शराब।
हो जाते विद्वान भी, पीकर बहुत खराब।।

18-
ना कोई छोटा यहाँ, बड़ा न कोई आज।
सब हारे इस वक्त से, जग मेँ इसका राज।।

19-
प्रेम भाव घर मेँ अगर, तो दौलत है फूल।
वरना ये लगता जहर, चुभता बन के शूल।।

20-
वह धन धन होता नहीँ, जो रखता है चोर।
धन चोरी का आग है, बचे न कोई कोर।।

21-
चाहे धूप कठोर हो, या जलता हो पाँव।
काम धाम करते सदा, वे ही पाते छाँव।।

22-
मीठा भी फीँका लगे, इतना मीठा बोल।
पर इस चक्कर मेँ कहीँ, झूठ न देना घोल।।

23-
आ जाओ हे कृष्ण तुम, लिए विष्णु का अंश।
एक नहीँ अब तो यहाँ, कदम-कदम पर कंस॥

24-
कंसो का ही राज है, रावण हैँ चहुँ ओर।
भला आदमी मौन है, जैसे कोई चोर।।

25-
होता यदि दूजा हुनर, होते हम भी खास।
भूखे कबसे फिर रहे, ले कविता आकाश।।

26-
कविता का आकाश ले, हम तो खाली पेट।
लौटे हैँ बाजार से, लेकर केवल रेट।।

27-
मुझ पर मातु जमीन का, इतना है उपकार।
इसके खातिर छोड़ दूँ, जी चाहे घर-बार।।

28-
मातु-पिता घर-बार से, धरती बहुत महान।
इसके आगे मैँ तुझे, भूल गया भगवान।।

29-
चालू हो जाता पतन, सुनेँ लगाकर ध्यान।
आ जाता इंसान मेँ, जिस दिन से अभिमान।।

30-
बादल के दल आ गये, ले दलदल का रूप।
रूप दलन का देख कर, बिलख रही है धूप।।

31-
वे जग मेँ हैँ मर चुके, सत्य न जिनके संग।
बिन डोरी कबतक उड़े, जैसे कटी पतंग।।

32-
बोली से ही सुख मिले, बोली से संताप।
बोली से मालूम हो, मन के कद की नाप।।

33-
संकट हो भारी बहुत, अंधेरा घनघोर।
उसमेँ भी कुछ रास्ते, जाते मंजिल ओर।।

34-
दारू पीने के लिए, जो भी बेचे खेत।
बन जाता है एक दिन, वह मुट्ठी की रेत।।

35-
धरती की चन्दा तलक, जाती है कब गंध।
इसीलिए करिए सदा, समता मेँ सम्बन्ध।।

36-
आलम ये बरसात का, देख रहे हैँ नैन।
धनी देखकर मस्त हैँ, मुफलिस हैँ बेचैन।।

37-
पशुओँ को बन्धक बना, हम लेते आनन्द।
आजादी खुद चाहते, कितने हैँ मतिमन्द।।

38-
कल की बातेँ याद रख, पर ये रखना याद।
आगे जो ना सोचते, हो जाते बरबाद।।

39-
भारत देश महान की, यह भी है पहचान।
घर आए इंसान को, कहते हैँ भगवान।।

40-
अच्छाई की राह पर, चलते रहिए आप।
दुःख चाहे जो भी मिले, या कोई संताप।।

41-
जिसके डर से सौ कदम, रहती चिन्ता दूर।
कहते उसको कर्म हैँ, दुख जिससे हो चूर।।

42-
पूजा करने से नहीँ, या लेने से नाम।
आगे बढ़ते हैँ सभी, बस करने से काम।।

43-
अच्छी बातेँ सोचिए, अच्छी कहिए बात।
अच्छाई अच्छी लगे, दिन हो चाहे रात।।

44-
जाति धर्म के नाम पर, लड़ते जो दिन रात।
भारत माँ के लाल वे, करते माँ से घात।।

45-
कथनी करनी एक हो, और इरादा नेक।
बैर भाव जाता रहे, मिलते मित्र अनेक।।

46-
रोगी सब संसार है, और पेट है रोग।
रोटी एक इलाज है, दर-दर भटकेँ लोग।।

47-
इस लोभी संसार मेँ, जीना है दुश्वार।
यारी भी झूठी लगे, झूठा लगता प्यार।।

48-
कहते हैँ वैभव किसे, जाने कहाँ किसान।
फुरसत कब देते उसे, कष्टोँ के फरमान।।

49-
धीरे धीरे ही सही, करते कोशिश रोज।
वे ही भर पाते यहाँ, जीवन मेँ कुछ ओज।।

50-
एक सफलता है यही, चैन अगर हो पास।
यह पाने के वास्ते, कर आलस का नाश।।

51-
धन असली है खो रहा, यह पूरा संसार।
नाम कहूँ तो पेड़ है, जो धरती का सार।।

52-
कैसे हो सकता भला, अमर किसी का नाम।
अमर नहीँ जब ये धरा, नश्वर सारे धाम।।

53-
असली धन है गाँव मेँ, हरियाली है नाम।
याद करूँ जब शहर को, दिखलाई दे जाम।।

54-
अगर किसी भी भ्रष्ट को, वोट दे रहे आप।
तो समझेँ हैँ दे रहे, निज बच्चोँ को श्राप।।

55-
जीवन है जो देश का, भूखों देता जान।
देता सबको रोटियां, कहते उसे किसान।।

56-
सोना ही महँगा नहीं, महँगे आलू प्याज।
पर सबसे महँगा हुआ, भाई-चारा आज।।

57-
कानों पर होता नहीं, तनिक मुझे विश्वास।
गाली देते देश को, इसके ही कुछ खास।।

58-
अपनी ही वह सम्पदा, कर देते हैं नष्ट।
और माँगते भीख तो, सुनकर होता कष्ट।।

59-
हम सबके ही वास्ते, सैनिक देते जान।
जाति-धर्म के नाम पर, क्यों लड़ते नादान।।

60-
एक धर्म होता अगर, होती दुनिया एक।
बिना किसी मतभेद क्या, होते युद्ध अनेक।।

61-
कहने से दिन में कभी, आ सकती है रात!
सच के आगे झूठ की, होती क्या औकात।।

62-
धन दौलत के लोभ में, मन के जलते पंख।
जले हुए मन से बजे, कैसे सुख का शंख।।

– आकाश महेशपुरी

Language: Hindi
1 Like · 1751 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

एक पल हॅंसता हुआ आता है
एक पल हॅंसता हुआ आता है
Ajit Kumar "Karn"
महसूस किए जाते हैं एहसास जताए नहीं जाते.
महसूस किए जाते हैं एहसास जताए नहीं जाते.
शेखर सिंह
चले शहर की ओर जब,नवयुवकों के पाँव।
चले शहर की ओर जब,नवयुवकों के पाँव।
RAMESH SHARMA
जंजीर
जंजीर
AJAY AMITABH SUMAN
*** होली को होली रहने दो ***
*** होली को होली रहने दो ***
Chunnu Lal Gupta
हवाओं ने बड़ी तैय्यारी की है
हवाओं ने बड़ी तैय्यारी की है
Shweta Soni
राधे राधे बोल
राधे राधे बोल
D.N. Jha
4990.*पूर्णिका*
4990.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ज़िन्दगी की बोझ यूँ ही उठाते रहेंगे हम,
ज़िन्दगी की बोझ यूँ ही उठाते रहेंगे हम,
Anand Kumar
कठपुतली ( #नेपाली_कविता)
कठपुतली ( #नेपाली_कविता)
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
वार
वार
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
Dr Arun Kumar shastri ek abodh balak Arun atript
Dr Arun Kumar shastri ek abodh balak Arun atript
DR ARUN KUMAR SHASTRI
बुन्देली दोहा प्रतियोगिता -192 वीं शब्द - टिक्कड़
बुन्देली दोहा प्रतियोगिता -192 वीं शब्द - टिक्कड़
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
*जीवन-आनंद इसी में है, तन से न कभी लाचारी हो (राधेश्यामी छंद
*जीवन-आनंद इसी में है, तन से न कभी लाचारी हो (राधेश्यामी छंद
Ravi Prakash
'रिश्ते'
'रिश्ते'
जगदीश शर्मा सहज
वर्ण पिरामिड
वर्ण पिरामिड
Rambali Mishra
अ
*प्रणय*
फूल तितली भंवरे जुगनू
फूल तितली भंवरे जुगनू
VINOD CHAUHAN
अच्छा रहता
अच्छा रहता
Pratibha Pandey
दोहा पंचक. . . . दिन चार
दोहा पंचक. . . . दिन चार
sushil sarna
"लोकतंत्र में"
Dr. Kishan tandon kranti
भारत का सामार्थ्य जब भी हारा
भारत का सामार्थ्य जब भी हारा
©️ दामिनी नारायण सिंह
*लोकतंत्र जिंदाबाद*
*लोकतंत्र जिंदाबाद*
Ghanshyam Poddar
मां चंद्रघंटा
मां चंद्रघंटा
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
F8bet là một trang nhà cái uy tín nhất hiện , giao diện dễ n
F8bet là một trang nhà cái uy tín nhất hiện , giao diện dễ n
f8betcx
सावन (दोहे)
सावन (दोहे)
Dr Archana Gupta
Feelings of love
Feelings of love
Bidyadhar Mantry
काव्य का राज़
काव्य का राज़
Mangilal 713
करने लगा मैं ऐसी बचत
करने लगा मैं ऐसी बचत
gurudeenverma198
**नेकी की राह पर तू चल सदा**
**नेकी की राह पर तू चल सदा**
Kavita Chouhan
Loading...