अस्फुट सजलता
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मैं बहुत उलझन में थी..रोज-रोज की मारपीट मेरे संस्कारों को बदल रही थी.. मैं कल की घटना याद करने लगी.. इन्होंने मेरी पूरी डायरी गैस पर रख दी..एक एक पन्ना राख हो गया..
“लो साहित्यकारा जी.. अपने सपनों के धुंए को कलेजे में भर लो और घर के काम में मन लगाओ, दिन भर पेज काला करती हो, अब बंद करो ये सिलसिला। औरतें चौके में ही अच्छी लगती हैं”
कहकर इन्होंने भड़ाक से दरवाजा बंद किया और बाहर निकल गये।
मैं वितृष्णा से भरी अपनी सास के कमरे में गई और उनकी गोद में सर रख कर फूट-फूट कर रो पड़ी थी। मेरी सासू माॅं से मेरे बहुत मीठे और भावपूर्ण संबंध थे, उस पल उनका मेरे सर पर हाथ रखना मुझे बहुत अच्छा लगा..
आज सुबह मैं धूप में अपने हाथों को घुमा रही थी.. अपनी रेखाओं को घूर रही थी..चेहरे पर कल का तनाव छाया था.. अचानक अम्मा की आवाज सुनाई पड़ी
“बेटा..”अम्मा बगल में खड़ी थी..
मैंने झट से ऑंसू पोंछे और रसोई की तरफ जाने लगी..वो मेरे सामने आईं और
मेरे हाथ में एक डायरी रख कर बोलीं..
“ये वो सब रचनाऍं हैं जो तुम मुझे पढ़ने को दे जाती थी..” अम्मा ने बहुत प्यार से बताया।
“अम्मा! मैंने अचरज भरी नजर से उन्हें देखा..
“हां बेटी! तुम इतना अच्छा लिखती थी कि मैं अपने पास लिख कर रख लेती थी और बाद में पढ़ा करती थी”
“अरे!” मैंने भावविह्वल होकर डायरी अपने सीने से लगा ली।
“और हाॅं.. मारपीट के आरोप में कुणाल को जेल हो गई है, रात में मैंने आनलाइन शिकायत दर्ज करवाई थी, सवेरे तुम जब मंदिर गई थीं तब पुलिस आई थी और उसको पकड़ कर ले गई है..अब तुम निश्चिंत होकर रहो बेटा, उसको कुछ दिनों की सजा मिलेगी, शायद उससे वो कुछ बदल जाए..”कह कर उन्होंने मेरे कंधे पर अपना हाथ रखा..
“अरे अम्मा!” मैं चरण स्पर्श करने झुकी, पर उन्होंने मुझे गले से लगा लिया।
स्वरचित
रश्मि संजय श्रीवास्तव
रश्मि लहर
लखनऊ, उत्तर प्रदेश