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9 Oct 2022 · 1 min read

अब रुक जाना कहां है

फैसला किया चलने का
अभी रुक जाना कहां है!
क्या फर्क पड़ता है कि
मंजिल अब कहां है !!
रुकना मना है अब
भरोसा है हौसलों पर !
स्वागत है हार का भी
मन यह डरता कहां है !!
हार -अनंत है नहीं .
हार से फिर क्यों डरे!
जीत का परचम भी
एक बार फहआना है !!
नैया बीच भंवर में है,
किनारे तक जाना है !
अब ना कोई बहाना है
लौट कर न आना है !!
जो जन मार्ग में छूट गए
कुछ प्रिय हमसे रूठ गए !
कुछ संघर्षों के चलते ही
कुछ रिश्ते हमसे छूट गए !!
वो तट पर सारे खड़े हुए
हाथ मालाओं से जड़े हुए !
स्वागत में मेरे खड़े हुए ..
उन सबको गले लगाना है !!

✍कवि दीपक सरल

Language: Hindi
Tag: कविता
3 Likes · 4 Comments · 203 Views
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