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25 Jul 2016 · 1 min read

अब न कोई गांधी न टैगोर है

कैसा ये रिवाज है कैसा ये समाज है।
फिजाओं में जहर है, कैसा मेरा शहर है।।।
बढ़ाई जा रही है जातिवाद की खाई।
क्यों मानवता पे आज बन आई।।।
धमकियों का चहुंओर शोर है।
नानक, गौतम, बुद्ध की धरती क्यों गोडसे घनघोर है।।।
प्रीत होती रीत यहां की, अब देख लेने से हर कोई भावविभोर है।
नज़र लग गई है कोई मुल्क मेरे को अब न कोई गांधी न टैगोर है।।।
नाम भगत सिंह का काम शैतान का
मजहब-मजहब का कान फाडू शोर है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।

Language: Hindi
Tag: कविता
1 Like · 1 Comment · 177 Views
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