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1 Feb 2017 · 1 min read

*वसंत गीत* ”आ नूतन कर श्रृंगार उषा”

गीत
कर हर्षित अब संसार उषा।
आ नूतन कर श्रृंगार उषा।

नभ मंडप में विस्तार वदन।
तम का कर सहचर साथ दमन।
मृदु सुषमा से महका मंजर।
आ अंबर से वसुधा के घर।
कर अभिनंदन स्वीकार उषा।
आ नूतन कर श्रंगार उषा।।१।।

वट मंजरि पल्लव फूलों में।
सर सरिता सागर कूलों में।
गुल पर तुहिनों के मोती धर।
वापी गिरि गव्हर स्वर्णिम कर।
दे कुदरत को निज प्यार उषा।
आ नूतन कर श्रंगार उषा।।२।।

वधु- वसन वसंती वदन पहन।
कर तृप्त नयन और अंतर्मन।।
सिर तरुओं सरसों का सहला।
संताप हरण कर छिटक कला।
खग कूजों की झंकार उषा।
आ नूतन कर श्रंगार उषा।।३।।

मदमत्त किये तरुणाई को।
आलिंगन दे अमराई को।
मधुमासी सुर्ख कपोलों को।
अधरों के छोड उसूलों को।
ले चूम मृदुल रुख्सार उषा।
आ नूतन कर श्रंगार उषा।।४।।

वन वीथि विहंगम कुंजों में।
लावल्य लसित मुख पुंजों में।
पधरा पग पावन डगर डगर।
आ शाख शाख आ शजर शजर।
कर स्पंदन संचार उषा।
आ नूतन कर श्रंगार उषा।।५।।

अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 360 Views
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