लोग हमेशा सताते रहे
लोग हमेशा सताते रहे
अश्क़ आँखों में आते रहे
तड़पते रहे गए हम उनकी यादों में
वो भी सदा अपनी यादों में तड़पाते रहे
भटक गए थे चंद क़दम
वो भी सदा भटकाते रहे
बंज़र था जहाँ सारा
सूखे में अश्क़ आते रहे
अपना बनाया ही कब था
हमेशा गैर वो अब बताते रहे
अँधेरा दूर ही कब हुआ था
जलते चिराग़ को भी बुझाते रहे
बेवफ़ाई जब करनी ही थी तो
क्यों वफ़ा के किस्से सुनाते रहे
पतझड़ ही रहा जीवन में
सावन के लिए तरसाते रहे
भूपेंद्र रावत
11।09।2017