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12 Sep 2016 · 1 min read

मधुबन माँ की छाँव है

‘आकुल’ या संसार में, माँ का नाम महान्।
माँ की जगह न ले सके, कोई भी इनसान।।1।।

माँ की प्रीत बखानिए, का मुँह से धनवान।
कंचन तुला भराइए, ओछो ही परमान।।2।।

मधुबन माँ की छाँव है, निधिवन माँ की ओज।
काशी, मथुरा, द्वारिका, दर्शन माँ के रोज।।3।।

मान और अपमान क्या, माँ के बोल कठोर।
बीच झाड़ के ज्यों खिलें, लालहिं मीठे बोर।।4।।

माँ के माथे चन्द्र है, कुल किरीट सा जान।
माँ धरती माँ स्वर्ग है, गणपति लिखा विधान।।5।।

‘आकुल’ नियरे राखिए, जननी जनक सदैव।
ज्यों तुलसी का पेड़ है, घर में श्री सुखदेव।।6।।

पूत कपूत सपूत हो, करे न ममता भेद।
मुरली मीठी ही बजे, तन में कितने छेद।।7।।

मात-पिता-गुरु-राष्ट्र ये, सर्वोपरि हैं जान।
उऋण न होगा जान ले, कर सेवा सम्मान।।8।।

‘आकुल’ महिमा जगत् में, माँ की अपरंपार।
सहस्त्र पिता बढ़ मातु है, मनुस्मृति अनुसार।।9।।

Language: Hindi
340 Views
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