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12 Feb 2017 · 1 min read

II मतदाताओं का अधिकार II

मतदाताओं का अधिकार ,
बस एक मत पत्र,
चंद बूंद स्याही,
और कुछ वर्षों तक,
मुंह बंद रखने के लिए एक मोहर l

और उसके बाद फिर वही,महंगाई ,
बेकारी, बेबसी और लाचारी का तांडव,
जिसमें अपना अस्तित्व और पहचान ढूंढता,
स्वाधीन देश का स्वाधीन नागरिक l

और दूसरी तरफ मतों की ईटों पर ,खड़ी होती,
प्रजातंत्र के रहनुमाओं की ऊंची हवेलियां ,
और उसमे भौंकने वाले कुत्ते,
ऐसे कुत्ते जो सिर्फ भोंकते हैं l

यह भौंकते हैं पांच वर्षों के अंतराल पर ,
जनता को अपनी उपस्थिति का एहसास,
दिलाने के लिए या उस वक्त ,
जब कभी खतरा नजर आता है ,
इन हवेलियों के ढहने का l

और एक बार फिर मिलता है ,
जनता को उसका अधिकार ,
एक मतपत्र चंद बूंद स्याही और एक मोहर,
साथ में अपनी लाचारी और बेबसी का एहसास l

संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश l

Language: Hindi
465 Views
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