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17 Jun 2016 · 1 min read

ग़ज़ल।इशारों से समझ लेंगें।

ग़ज़ल।इशारो से समझ लेंगे ।

झुकी नजरों की बेचैनी निखारों से समझ लेंगे ।
तेरे ख़ामोश अधरों को इशारों से समझ लेंगें ।।

ये मत समझो कि नाज़ुक़ मैं बेगाना हूँ दीवाना हूँ ।
दिले हालात ग़म रौनक़ बहारों से समझ लेंगें ।।

क़ातिल है तुम्हारे भी शहर मे कुछ तेरे हमदम ।
मिलोगे जब कभी उनसे सहारों से समझ लेंगें ।।

यक़ीनन इश्क़ में बिखरे यहा जज़्बात हैं काफ़ी ।
बहे जो आँख में आंसू किनारों से समझ लेगें ।।

छुपाओ लाख़ तुम रंजिश करोगे क्या बहाना तुम ।
उठी नफ़रत की बेशक़ इन दीवारों से समझ लेगें ।

रहो ख़ामोश’रकमिश’तुम जुबां खोलो या न खोलो ।
तुम्हे कितनी मुहब्बत है विचारों से समझ लेंगें ।।

राम केश मिश्र’रकमिश,

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