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9 Sep 2017 · 2 min read

हमें क्या?

अलसाई आखों से आसमान को निहारते हुये छत की मुंडेर पर बैठे- बैठे बस एक ही बात सोचे जा रहा था;
आखिर कब अंत होगा इस नामुराद आतंकवाद का ,
तभी पडो़स वाले जुम्मन चाचा आकर नीचे से आवाज देने लगे , कहाँ हो शुक्ला जी
उनकी आवाज मेरे कानों तक पहुँची, सोचों की तंद्रा टूटी और मैं बोझिल कदमों से चलता हुआ नीचे आया।
हाँ चाचा क्या बात हुई ; कैसे आना हुआ?
जुम्मन चाचा बोले भई कल ईद है आपको मेरे घर आना हैं।
मैंने कहा; ठीक है चाचा देखेंगे अगर समय अनुकूल रहा तो अवश्य हीं उपस्थित होऊंगा। चाचा मेरे जवाब और चेहरे के हाव- भाव से विचलित होकर बोले
शुक्ला जी क्या बात है आज बड़े ही गमगीन दिख रहे हो ऐसा क्या हो गया
उनका हृदय किसी अनिष्ठ की आसका से ग्रसित हो उठा।
मैने कहाँ चाचा समझ नहीं आ रहा यह आतंकवाद आखिर कभी खत्म भी होगा या नहीं।
जुम्मन चाचा ने कोई जवाब नहीं दिया वश मेरे तरफ देखते रहे और बोले-
आप भी क्या- क्या सोचते रहते हो
यह सोचना हमारा काम थोड़े ही न है देश में सरकार है, सीमा पर सैनिक हैं, हर राज्य में अपनी पुलिस है, कई एक सुरक्षा एजेंसीयाँ हैं , यह उनका काम है उन्हें सोचने दो अपना बहुमूल्य समय क्यों बरबाद करना।
मैं और परेशान हो उठा क्या जो बातें जुम्मन चाचा ने कहीं वह सही है;
हमें केवल अपनी हीं चिंता होनी चाहिए?
समाज में, देश में, दुनिया में जो कुछ भी घटित हो रहा है उससे हमारा कोई सरोकार नहीं।
ये बातें हमें अबतक विचलित किये हुये है।
और शायद जुम्मन चाचा वाला सोच ही हम सभी का है जिस कारण यह समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। जिस दिन सभीने इस विषय पर गम्भीरता से सोचना एवं पहल करना प्रारंभ कर दिया यथार्थ है इस समस्या का अंत हो जाना है। परन्तु काश………?
….पं.संजीव शुक्ल “सचिन”

Language: Hindi
365 Views
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