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15 Jan 2017 · 1 min read

सुनो बेटियों

सुनो बेटियों

अब ‘समय’ समझदार हो गया है,
देखो तुम्हारे साथ खड़ा है.

‘समझ’ सामयिक हो गयी है
तभी तुम्हारे समीप आ चुकी है.

‘सोच’ की तो पूछो ही मत,
तुम्हारे लिए उसने चोला ही बदल लिया है.

‘विचार’ ने तर्कों के तीरों से तरकश भर लिया है,
उसे पता है तुम्हें कब किस तीर की जरूरत लग सकती है.

‘व्यवहार’ ने कदम बढ़ा दिए हैं,
उसे मालूम है तुम्हारी खातिर किस ओर मुड़ना है.

‘निर्णय’ इस अफ़सोस में डूबा है कि,
क्यों वह अब तक तुम्हारे जेहन में नहीं बसा है.

अधिकार’ कर्तव्यनिष्ठ हो चला है,
तुम्हारे स्वागत में उसने लाल कालीन बिछा दिया है .

सो बेटियों,
उठो जागो और नए ‘समय’, ‘समझ’, ‘सोच’ ‘विचार’ ‘व्यवहार’ ‘निर्णय’ और अधिकार के साथ नई समतामूलक दुनिया रचने तक मत रुको.
-किसलय पंचोली

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