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5 Aug 2017 · 1 min read

दुविधा (मुक्तक)

सुना है भगवन कलियुग में तुम कल्कि रूप में आओगे
पापो से बोझिल वसुधा को पाप मुक्त करवाओगे
किन्तु एक दुविधा है भगवन, यहाँ एक नहीं कई रावण हैं
आखिर कैसे इन रावणों पे तुम धर्मध्वजा फहरावोगे।
…………
कई धर्म के पहरेदार यहाँ जो पाप के ही अनुयायी है
तन पे इनके हैं श्वेत वस्त्र मन कालिख भरा स्याही है
नित नया आडंबर करते है जैसे ये भक्त शिरोमणि हों
लेकिन हर दिन के कर्मों से लगते ये नित्य कसाई हैं।
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
9560335952

Language: Hindi
483 Views
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