मत्तागयन्द/मालती छंद
1
मौसम आज करे मदहोश बयार चली बहकी बहकी सी
घूँघट खोल रही कलिका लगती कितनी चहकी चहकी सी
फूल खिले उड़ती खुशबू लगती बगिया महकी महकी सी
लाल हुई गुलमोहर की हर डाल लगे दहकी दहकी सी
2
मात पिता गम दूर भगा कर दामन में खुशियाँ भरते हैं
संतन की उँगली पकड़े उनके सँग राह सभी चलते हैं
काम बड़े दिन रात करें न कभी लगता वह तो थकते हैं
क्षीण वही जब हो तब बोझ बने घर में सहमे रहते हैं
3
अम्बर आज अबीर गुलाल उड़े मन पागल सा इतराये
ओढ़ बसंत नई चुनरी इक दुल्हन सा लगता शरमाये
गान करें भँवरे मनभावन फागुन ये सबके मन भाये
और रँगीन फुहार भिगो तन याद पिया अब खूब दिलाये
डॉ अर्चना गुप्ता