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19 Sep 2017 · 1 min read

भूल बैठा हूँ तभी से जानेमन ये मयकदा

आज की हासिल
ग़ज़ल
*******
आ गया है दर्द लेकर फिर फिर दुखों का काफिला
खो गया है भीड़ में ये दिल हमारा ग़मज़दा
??
प्यार तो मिलता नहीं है अब दिलों में देखिए
आदमी बुग़्जो हसद में आज कल है जी रहा
??
जब से देखी है नशीली ये निगाहें आपकी
भूल बैठा हूँ तभी से जानेमन ये मयक़दा
??
सब्ज़ होगा किस तरह से बाग अपने मुल्क़ का
चार सूं चलने लगी है जब तनफ़्फ़ुर की हवा
??
इम्तिहाने इश्क़ है या दौर कोई मौत का
आजमाता ही रहा है वो सितमग़र बारहा
??
दर्दे-उल्फ़त दर्दे-हिज्रां जिन्दगी में गर नहीं
आए गा फिर किस तरह से जीने का इतना मज़ा
??
गर नहीं मिट पाएं गी ये नफ़रतें “प्रीतम” अभी
सोच लो आ जाय गा फिर एक दिन तो ज़लज़ला
??
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
18/09/2017
??????????
2122 2122 2122 212
??????????

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