Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Sep 2016 · 4 min read

पितरो का श्राद्ध कर्म

श्राद्ध कर्म क्या है —–
———————-

“दीयते यत्‌ ,
तत्‌ श्राद्धम्‌’ श्राद्ध कर्म”

अर्थात वह कर्म जो पितरों की तृप्ति के लिए श्रद्धा और विश्वास से किया जाता है उसे “श्राद्ध कर्म” कहते हैं।

प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के कृष्णपक्ष के पंद्रह दिन पितृपक्ष के श्राद्ध कर्म के लिए रखे जाते है। इस श्राद्धपक्ष का एक अन्य नाम महालय पक्ष भी हैं। इन सभी दिनों में लोग अपने पूर्वजों को जल तर्पण करके, उनके मोक्ष एवं शान्ति की कामना करते है तथा उनकी मृत्युतिथि अर्थात पुण्यतिथि (वह तिथि जिस पर वे अन्तिम-श्वास त्यागते है ) पर श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करते हैं।

श्राद्धकर्म में होम, पिण्डदान एवं तर्पण (जल-भोजन) आदि आते हैं। महर्षि पाराशर के कहते है कि “देश, काल तथा पात्र में विधि द्वारा जो कर्म तिल, यव, कुश और मंत्रों द्वारा श्रद्धापूर्वक किया जाये, वही श्राद्ध है।”

सूर्य के कन्याराशि में आने पर पितर परलोक से उतर कर कुछ समय के लिए पृथ्वी पर अपने पुत्र – पौत्रों के यहां पर रहने के लिए आते हैं।
पुराणों में यह माना जाता है कि यमराज हर वर्ष श्राद्ध पक्ष में सभी जीवों को कुछ समय के लिए मुक्त कर देते हैं। जिससे वह अपने स्वजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सकते हैं। हिंदू संस्कृति में तीन पूर्वज पिता, दादा तथा परदादा को तीन देवताओं के समान माना जाता है। पिता को वसु के समान माना जाता है। रुद्र देवता को दादा के समान माना जाता है एवं आदित्य देवता को परदादा के समान माना जाता है। श्राद्ध के समय यही अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार यह माना जाता है कि दिवंगत आत्मा श्राद्ध के दिन श्राद्ध करने वाले के शरीर में प्रवेश करते हैं श्राद्ध के समय यह वहां मौजूद रहते हैं और नियमानुसार उचित तरीके से कराए गए श्राद्ध से तृप्त होकर वह अपने वंशजों को सपरिवार सुख तथा समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को अपने पूर्व की तीन पीढिय़ों अर्थात माता-पिता, पितामह-पितामही (दादा-दादी), प्रपितामह-प्रपितामही (परदादा-परदादी) के साथ-साथ अपने मातामह-मतामही (नाना-नानी) का भी श्राद्ध करना चाहिए।
इसके अतिरिक्त श्राद्धकर्ता न होने की स्थिति में हम अपने गुरु-गुरुमाता, ताऊ-ताई, चाचा-चाची, भाई-भाभी, सास-ससुर, मामा-मामी, बहिन-बहनोई, पुत्री-दामाद, भतीजा-भतीजी, भानजा-भानजी, बूआ-फूफा, मौसा-मौसी, पुत्र-पुत्रवधू, मित्र, शिष्य, सौतेली माता तथा उसके माता-पिता आदि के श्राद्ध को किया जा सकता है।
सामान्यत: पुत्र को ही अपने पिता एवं पितामहों का श्राद्ध करने का अधिकार है, किन्तु पुत्र के अभाव में मृतक की पत्नी तथा पत्नी न होने पर पुत्री का पुत्र (धेवता) भी श्राद्ध कर सकता है।
दत्तक (गोद लिए हुए) पुत्र को भी श्राद्ध करने का अधिकार है। वंश में कोई पुरुष न होने की दशा में शास्त्रों ने स्त्रियों को भी श्राद्ध करने का अधिकार दिया है। गरुड़ पुराण के अनुसार- जिसके कुल में कोई भी न हो, वह जीवित-अवस्था में स्वयं अपना श्राद्ध कर सकता है ।
श्राद्धकर्म में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखा जाता है, जैसे:- जिन व्यक्तियों की सामान्य मृत्यु चतुर्दशी तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध केवल पितृपक्ष की त्रायोदशी अथवा अमावस्या को किया जाता है। जिन व्यक्तियों की अकाल-मृत्यु (दुर्घटना, सर्पदंश, हत्या, आत्महत्या आदि) हुई हो, उनका श्राद्ध केवल चतुर्दशी तिथि को ही किया जाता है। सुहागिन स्त्रियों का श्राद्ध केवल नवमी को ही किया जाता है। नवमी तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम है। संन्यासी पितृगणों का श्राद्ध केवल द्वादशी को किया जाता है। पूर्णिमा को मृत्यु प्राप्त व्यक्ति का श्राद्ध केवल भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा अथवा आश्विन कृष्ण अमावस्या को किया जाता है। नाना-नानी का श्राद्ध केवल आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को किया जाता है।
श्राद्धकर्म में अधिक से अधिक तीन ब्राह्मण पर्याप्त माने गये हैं। श्राद्ध के लिए बने पकवान तैयार होने पर एक थाली में पांच जगह थोड़े-थोड़े सभी पकवान परोसकर हाथ में जल, अक्षत, पुष्प, चन्दन, तिल ले कर पंचबलि (गो, श्वान, काक, देव, पिपीलिका) के लिए संकल्प करना चाहिए। पंचबलि निकालकर कौआ के निमित्त निकाला गया अन्न कौआ को, कुत्ते का अन्न कुत्ते को तथा अन्य सभी अन्न गाय को देना चाहिए। तत्पश्चात् ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। ब्राह्मण भोजन पश्चात उन्हें अन्न, वस्त्र, ताम्बूल (पान का बीड़ा) एवं दक्षिणा आदि देकर तिलक कर चरणस्पर्श करना चाहिए।
ब्राह्मणों के प्रस्थान उपरान्त परिवार सहित स्वयं भी भोजन करना चाहिए। श्राद्ध के लिए शालीन, श्रेष्ठ गुणों से युक्त, शास्त्रों के ज्ञाता तथा तीन पीढिय़ों से विख्यात ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए। कुछ अन्न और खाद्य पदार्थ जो श्राद्ध में नहीं प्रयुक्त होते- मसूर, राजमा, कोदों, चना, कपित्थ, अलसी, तीसी, सन, बासी भोजन और समुद्रजल से बना नमक।
हिरणी, उंटनी, भेड़ और एक खुरवाले पशु का दूध भी वर्जित है पर भैंस का घी वर्जित नहीं है। श्राद्ध में दूध, दही और घी पितरों के लिए विशेष तुष्टिकारक माने जाते हैं। श्राद्ध किसी दूसरे के घर में, दूसरे की भूमि में कभी नहीं किया जाता है। जिस भूमि पर किसी का स्वामित्व न हो, सार्वजनिक हो, ऐसी भूमि पर श्राद्ध किया जा सकता है।
क्यों करना चाहिए
——————— सच्चे मन, विश्वास, श्रद्धा के साथ किए गए संकल्प की पूर्ति होने पर पितरों को आत्मिक शांति मिलती है। जो परिजन अपने मृतकों का श्राद्ध कर्म नहीं करते उनके प्रियजन कालान्तर भटकते रहते हैं। इस कर्म के माध्यम से आत्मा को सही मुकाम मिल जाता है और वह भटकाव से बचकर मुक्त हो जाती है
पुराणों के अनुसार पितरों और देवताओं की योनि ही ऐसी होती है की वे दूर की कही हुई बातें सुन लेते हैं, दूर की पूजा-अन्न भी ग्रहण कर लेते हैं और दूर की स्तुति से भी संतुष्ट होते हैं। इसके सिवा ये भूत, भविष्य और वर्तमान सब कुछ जानते और सर्वत्र पहुच जाते हैं। पांच तन्मात्राएं, मन, बुद्धि, अहंकार और प्रकृति- इन नौ तत्वों का बना हुआ उनका शरीर यह क्षमता रखता है।

– डॉ मधु त्रिवेदी

Language: Hindi
Tag: लेख
68 Likes · 615 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from DR.MDHU TRIVEDI
View all
You may also like:
रामायण  के  राम  का , पूर्ण हुआ बनवास ।
रामायण के राम का , पूर्ण हुआ बनवास ।
sushil sarna
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
मोबाइल महिमा
मोबाइल महिमा
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
वर्षा जीवन-दायिनी, तप्त धरा की आस।
वर्षा जीवन-दायिनी, तप्त धरा की आस।
डॉ.सीमा अग्रवाल
" यह जिंदगी क्या क्या कारनामे करवा रही है
कवि दीपक बवेजा
राह देखेंगे तेरी इख़्तिताम की हद तक,
राह देखेंगे तेरी इख़्तिताम की हद तक,
Neelam Sharma
भिखारी का बैंक
भिखारी का बैंक
Punam Pande
तेरी चाहत हमारी फितरत
तेरी चाहत हमारी फितरत
Dr. Man Mohan Krishna
हे कान्हा
हे कान्हा
Mukesh Kumar Sonkar
#मंगलकामनाएं
#मंगलकामनाएं
*Author प्रणय प्रभात*
जर जमीं धन किसी को तुम्हारा मिले।
जर जमीं धन किसी को तुम्हारा मिले।
सत्य कुमार प्रेमी
A little hope can kill you.
A little hope can kill you.
Manisha Manjari
चेहरे की शिकन देख कर लग रहा है तुम्हारी,,,
चेहरे की शिकन देख कर लग रहा है तुम्हारी,,,
शेखर सिंह
*_......यादे......_*
*_......यादे......_*
Naushaba Suriya
कौन नहीं है...?
कौन नहीं है...?
Srishty Bansal
सम्मान से सम्मान
सम्मान से सम्मान
Dr. Pradeep Kumar Sharma
रामभक्त संकटमोचक जय हनुमान जय हनुमान
रामभक्त संकटमोचक जय हनुमान जय हनुमान
gurudeenverma198
तुझे पाने की तलाश में...!
तुझे पाने की तलाश में...!
singh kunwar sarvendra vikram
*अर्ध-विराम सही स्थान पर लगाने का महत्व*
*अर्ध-विराम सही स्थान पर लगाने का महत्व*
Ravi Prakash
मेरी शक्ति
मेरी शक्ति
Dr.Priya Soni Khare
क्या कर लेगा कोई तुम्हारा....
क्या कर लेगा कोई तुम्हारा....
Suryakant Dwivedi
मीनाकुमारी
मीनाकुमारी
Dr. Kishan tandon kranti
चिरैया पूछेंगी एक दिन
चिरैया पूछेंगी एक दिन
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
3271.*पूर्णिका*
3271.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
सत्यम शिवम सुंदरम
सत्यम शिवम सुंदरम
Harminder Kaur
उच्च पदों पर आसीन
उच्च पदों पर आसीन
Dr.Rashmi Mishra
आया खूब निखार
आया खूब निखार
surenderpal vaidya
खुदी में मगन हूँ, दिले-शाद हूँ मैं
खुदी में मगन हूँ, दिले-शाद हूँ मैं
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
जिसे मैं ने चाहा हद से ज्यादा,
जिसे मैं ने चाहा हद से ज्यादा,
Sandeep Mishra
अनमोल जीवन
अनमोल जीवन
डॉ०छोटेलाल सिंह 'मनमीत'
Loading...