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9 Jun 2017 · 1 min read

** क्षणिका **

ऐ चाँद मेरे
मैं तुझ तक
पहूंचूं कैसे
निगलने को है
बादल परछायी मेरी
डसने को नागाकृति
बहुत विकल है
चल आ
अब ज़मी पर
उतर मुझसे मिल
अरे यूं
मुस्कुराता क्यूं है
मेरी मजबूरियों को समझ
या फिर
मैं गाऊं बादल राग कोई
और
आग लग जाये
इस अवरोध पथ में
तुम पिघल कर
मुझसे आ मिलो
या फिर
आग की भेंट चढ़ जाओ तुम
और मैं मुस्कुराऊँ
अपनी विवसता पर
क्या ये
तुमको अच्छा लगेगा
और मेरे
हृदय की शीतल आग
कभी शांत हो पायेगी
तुम्हारे बिना
?मधुप बैरागी

Language: Hindi
1 Like · 391 Views
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