Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Feb 2017 · 8 min read

कुँडलिया-छंद

पशु पक्षी,पर्यावरण पर आधारित कुंडलिया छंद


विषधर

विषधर शिव के कंठ मे,
मानव चरण न पाय।
उगले मानव जहर तब,
विषधर भी मर जाय।।
विषधर भी मर जाय,
अरे शरण मिले कैसे।
जब पशु नंदी नाग,
खतरे मे आज जैसे।।
“अनेकांत”कवि कहत,
मानव बना है अजगर।
सभी कुछ रहा निगल,
बचेगा कैसे विषधर।।


हुद-हुद

हुद हुद का आकार भी,
मैना जैसे होय।
अभी कभी तूफान से,
जाने हैं सबकोय।।
जाने हैं सबकोय,
अरे चेते ना तब भी।
छोटे छोटे पक्षी,
चेताएं हमें फिर भी।।
‘अनेकांत’ कवि कहत,
खोय नही कभी सदबुध
पक्षी भाषा समझ,
चिल्लाय पंछी हुद हुद।।५८।।

हंस

परमहंस त्यागी पुरुष,
देते हैं उपदेश।
बगुला प्रवृत्ति छोड़िये,
रखें हंस का भेष।।
रखें हंस का भेष,
यह पक्षी बड़ा विवेकी।
मायाचारी त्याग ,
सरल बन करिये नेकी।।
‘अनेकान्त’ कवि कहत,
मायावी समझो कंश।
अंदर बाहर एक,
समझें वही परम हंस।।

हिरण

हिरण मरीचिका जैसे,
भ्रम पाले इंसान।
पर इंसान तो ज्ञानी,
पशु तो है नादान।।
पशु तो है नादान,
चलो वर्षा जल रोकें।
जल खर्चे न व्यर्थ,
सब सोचें एक होकें।।
‘अनेकांत’ कवि कहत,
भ्रम कारण मरे हिरण।
वन तालाव बचांय,
भ्रम टूटे बचे हिरण।।


सारस

सारस की लम्बी चोंच,
टाँगें ऊँची जान।
दल दल पानी मे रहे,
यह उसकी पहचान।
यह उसकी पहचान
सदा जोड़ी मे रहते
इनका प्रेम निहार,
अरे हम क्यों ना करते।।
अनेकांत कवि कहत,
बचाले धरती का रस।
वन पशु हित की सोच,
तब विलुप्त न हों सारस।।

तोता मैना

तोता मैना सुर मधुर,
जंगल सुरमय होय।
मनुआ सुर मे सुर मिला,
तब सब मंगल होय।।
तब सब मंगल होय,
बोलिए मीठी वाणी।
ये पक्षी तो होंय,
अद्भुत मौसम विज्ञानी।।
अनेकांत कवि कहत,
आज तोता क्यों रोता।
पिंजरे से हो मुक्त,
तभी खुश होगा तोता
।।


पवन

पवन वेग से चले जब,
धरती भी कप जाय।
मानव की सामर्थ क्या,
पवन बिना मर जाय।
पवन बिना मर जाय,
सुनामी बन जब आवे
केवल एक उपाय,
मनुज जब कहर न ढावे
‘अनेकांत’कवि कहत
सभी ओर लगाकर वन।
पर्यावरण सुधार,
मिले तब ही शुद्ध पवन।।

बिच्छू

बिच्छू डेरा पीठ पर,
कवच सुरक्षा धार।
बस इतना ही जानिए,
भय दिखला पथ पार।।
भय दिखला पथ पार,
तुझे भी किसने रोका।
खतरा जब ही जान,
तभी जब इनको टोका।।
‘अनेकांत’ कवि कहत,
करिये न बात उड़नछू।
सीधी सच्ची बात,
बचेगा तब ही बिच्छू।।

केंचुआ

छोटा प्राणी केंचुआ,
खेती की है जान।
उपजाऊ भूमि करे,
उन्नत बने किसान।।
उन्नत बने किसान,
केंचुआ निशदिन पालें।
बंजर होती भूमि,
सभी मिल शीध्र बचालें।।
‘अनेकांत’कवि कहत,
भूमि हित खेती वाड़ी।
बहु उपयोगी जान,
केंचुआ छोटा प्राणी।।

१०

वेक्टीरिया(सूक्ष्म जीवाणुँ)

वेक्टीरिया की शक्ती,
अब वैज्ञानिक शोध।
इनसे होते रोग पर,
इनसे ही प्रतिरोध।।
इनसे ही प्रतिरोध,
भले जीवाणूं छोटे।
जीव जीव उपकारी,
करिये भाव ना खोटे।।
अनेकांत कवि कहत,
मनुज सोच सांवरिया।
सबको लेय सँवार,
भले होय वेक्टीरिया।।
११
वेक्टीरिया जीवाणूँ,
उपयोगी श्रीमान।
दूध दही पनीर संग,
बनते कई पकवान।।
बनते कई पकवान,
हमारा भाव यही है।
धर्म अहिंसा पाल,
धर्म तो यही सही है।।
अनेकांत कवि कहत,
रखे मानव दिल दरिया।
तब सब मन को भाय
भले होय वेक्टीरिया।।

१२

कबूतर

कबूतर सुंदर पक्षी,
लम्बी भरे उड़ान।
संदेशा वाहक कभी,
इसका कार्य महान।
इसका कार्य महान,
प्रेम के अनगिन किस्से।
भरता रहा उड़ान,
किन्तु क्या उसके हिस्से
‘अनेकांत’कवि कहत,
अरे मानव अब बसकर,
बचा खेत खलिहान,
बचेगा तभी कबूतर।।

१३

गौरक्षा

गौरक्षा व्रत धार कर,
करिये पुण्य अपार।
गौ महिमा गुणगान कर,
ऊर्जा का संचार।।
ऊर्जा का संचार,
ऊँचे कारज कीजे।
गौ हत्या को रोक,
लाज अपनी रख लीजे।।
अनेकांत कवि कहत,
करें जीवों की रक्षा।
धर्म अहिंसा पाल,
होयगी तब गौरक्षा।।

१४

गौपालक

गौपालक की कमी से,
संकट है विकराल।
संकट का हल हो तभी,
गौपालक खुशहाल।।
गौपालक खुशहाल,
बचेगी तब गौमाता।
हर बच्चे को दूध,
तभी होगी खुश माता
अनेकांत कवि कहत,
सोचिये सब अभिभावक ।
बच्चों मे संस्कार,
बनेंगे तब गौ पालक।।

१५

गौशाला

गौशाला की सोच क्यों,
उपजी थी श्रीमान।
बूचड़खाना देखकर,
दिल दहले धीमान।।
दिल दहले धीमान,
धर्म की ध्वजा चड़ाई
गौरक्षा के हेतु,
गौशाला तभी खुलाई
अनेकांत कवि कहत,
खुले और न मधुशाला।
तभी बचें संस्कार,
खुलेगी तब गौशाला।।

१६

बिल्ली

बिल्ली नही है पालतु,
तब भी तो उपकार।
मैं आऊँ पहले कहे,
पार करे फिर द्वार।।
पार करे फिर द्वार,
देखकर चूहा भागे।
और अशुभ पहचान,
द्वार पर हमसे आगे।।
अनेकांत कवि राय,
राखिये नैक तसल्ली।
चलिये थोड़ा रुककर
बतलाए यही बिल्ली।

१७

स्वान

स्वान वृत्ति उसके लिए,
जीवन का आधार।
पर मानव यह वृत्ति रख,
चापलूस बस यार।।
चापलूस बस यार,
स्वान वफादार होते।
पर मानव इस काज,
आज नफादार होते।।
‘अनेकांत’कवि राय,
हम क्यों बनते नादान।
जितना हमको ज्ञान,
ना उतना ज्ञानी स्वान।।

१८

घोड़ा

घोड़ा सारे विश्व में,
रखे अलग पहचान।
राज भवन की शान में,
होते यही प्रधान।।
होते यही प्रधान,
कभी ना थकता रण में।
चंचल रख पद चाप,
शक्ति भरे सेन्य बल में।।
‘अनेकांत’कवि राय,
सभी से नाता जोड़ा।
धरम करम की शान
अरे तभी बना घोड़ा।।

१९

ऊँट
रेगिस्थान जहाज जो,
कहलाता श्रीमान।
मेहनतकश ऊँचा पशु,
ऊँट कहें धीमान।
ऊँट कहें धीमान,
मानवों का उपकारी।
बोझा ढोता खूब,
साथ में करे सवारी।।
‘अनेकांत’कवि राय,
जब घूमें राजस्थान।
ऊँट की महिमा तब,
जब तपता रेगिस्थान।।

२०

पंखा टोकनी

पंखा हो या टोकनी,
उपयोगी सामान।
बांस सुलभ सस्ता मिले,
तभी बने आसान।।
तभी बने आसान,
सभी मिल बांस लगाएं।
पर्यावरण सुधार,
कुटीर उद्योग बचाए।
‘अनेकांत ‘कवि राय,
बड़ाते जैसे तनखा,
वैसे दाम बड़ांय,
टोकनी हो या पंखा।।

२१

सूपा

सूपा बनता बांस का,
बांस बड़ा मजबूत।
सड़ता गलता ना कभी,
समझो ठोस सबूत।।
समझो ठोस सबूत,
बांस का मंडप देखें।
शादी मे अनिवार्य,
महत्व बांस का लेखें।।
‘अनेकांत’ कवि राय
समझिये जैसे फूपा।
वैसे महिमावंत,
जानिये अपना सूपा।।

२२

सोफा

सोफा सुंदर बांस का,
बनता बिविध प्रकार।
श्रेष्ठिजन अपनांय तभी,
बने श्रेष्ठ आकार।।
बने श्रेष्ठ आकार,
देख तब सब ही लेंगे
कोरा भाषण स्वांग,
खुशी कुछ पल ही देंगे।।
‘अनेकांत’ कवि राय,
सबसे अच्छा तोहफा।
जाने सब श्रीमान,
सुंदर बांस का सोफा।।

२३

डलिया

डलिया दुर्लभ बांस की,
आज हुई श्रीमान।
लाभ कमाने के लिए,
बेच रहे ईमान।
बेच रहे ईमान,
गरीवों से बेमानी।
लघु उद्योग बड़ांय,
देश की तब ही शानी।
‘अनेकांत’कवि राय,
धरिये भेष ना छलिया
जंगल बांस बचांय,
बनेगी तब ही डलिया।।

२४

टुकना

टुकना अब दिखते नही,
बाजारों मे आज।
टव भी बेचे कंपनी,
बंशकार पर गाज।।
बंशकार पर गाज,
बराबरी न कर पाता।
बच जाता व्यापार,़
अगर बांस मिल जाता
‘अनेकांत’कवि राय,
बंसकार नही रूकना।
बड़ा करें व्यापार।
उचित मूल्य तभी टुकना।।

..

२५

चमगादड़

चमगादड़ उल्टा लटक
जिससे भरे उड़ान।
मानव उल्टी सोच से,
बस केवल अवसान।
बस केवल अवसान,
उड़ान पंछी से सीखे,
हो जीवन निर्वाह,
अहं मे कभी न चीखें
‘अनेकात’कवि राय,
बचेगी केवल राखड़।
अभी समय कुछ सोच,
उड़ेगी तब चमगादड़।।

२६

पपीहा

पपीहा स्वाति नक्षत्र,
देख देख हरषाय।
ईश्वर की होती कृपा,
मेघ नीर वरषांय।
मेघ नीर वरषाय,
आज मानव ही बाधा।
पर्यावरण सुधार,
पीर हरो श्याम राधा।।
‘अनेकांत’कवि विनत,
मानव बनके मसीहा।
जीवों की प्यास बुझांय।
ताकते मेघ पपीहा।।
२७
नेवला गोह

अब ना दिखता नेवला,
और न दिखती गोह।
ये प्राणी अब कहाँ हैं
किसको इनकी टोह।
किसको इनकी टोह,
जब कांक्रीट के जंगल।
जिससे ताप अपार,
कहाँ से होवे मंगल।।
‘अनेकांत’कवि राय,
अस्तित्व बचाय अपना।
जंगल खूब लगांय,
प्रदूषण करिये अब ना।।
२८
मगर मच्छ एवं घड़ियाल

मगर मच्छ घड़ियाल का,
जल जीवन आधार।
मानव व्यर्थ उड़ेलता,
ये कैसा व्यवहार।
ये कैसा व्यवहार,
अरे व्यवहार सुधारें।
जल की महिमा जान,
जल रक्षा व्रत धारें।।
‘अनेकांत’कविराय,
रखिये ना कोई कसर।
जल जंगल तालाब,
और बचांय मच्छ मगर।।

२९

कठफोड़ा(वुड पिकर)

कठफोड़ा निज घर बना,
बेघर को दे सीख।
फटेहाल मानव बना ,
माँग रहा है भीख।।
माँग रहा है भीख,
अरे पंछी ही अच्छे।
निज कर्तव्य करत,
लगत बे मन के सच्चे।।
‘अनेकांत’कवि राय,
नियम मानव ने तोड़ा।
तपती धरा अपार,
बचे कैसे कठफोड़ा।।

३०

गोरैया

गोरैया.को देखिए,
तिनका तिनका जोड़।
रचती ऐसा घोंसला,
जिसकी न कोई तोड़
जिसकी न कोई तोड़
अरे क्यों मनुज न सोचें
बेघर क्यों हम आज,
नीतियाँ अपनी जाँचें
‘अनेकांत’कवि राय
चूँ चूँ चहके चिरैया
आँगन सुरमय होय,
चहके संग गोरैया।।
३१
उल्लू
उल्लू का तो गुण यही,
जो दिन मे न दिखाय।
मानव.क्यों ओगुण.धरे,
जो दिन मे अंधराय।
जो दिन मे अँधराय,
पूरी रात वो जगता।
पशु नाहक बदनाम,
ओगुण मनुज ही धरता।
‘अनेकांत’कविराय,
आलसी बने निठल्लू।
दिन मे सोते मानव
रात मे लगते उल्लू।।
३२
कौआ
कौआ काला होत है,
पर उसका क्या दोष।
मानव मन काला रखे,
करता सब पर रोश
करता सब पर रोश,
अरे कौआ से सीखे।
अपनी जाती देख,
व्यर्थ मे कभी न चीखे।।
‘अनेकांत कवि राय,
करिये सबका बुलौआ।
बाँट बाँट कर खाय,
देखिए कैसे कौआ।।

३३

गिरगिट

गिरगिट बदले रंग तब,
योनीगत व्यवहार।
मानव रंग बदले यदि
तो पागलपन यार।।
तो पागलपन यार,
यह बात समझ लीजे।
बस बदरंगी सोच
सब संग धवल कीजे
‘अनेकांत’ कवि कहत,
कभी ना करिये घिसपिट
सरल सत्य व्यवहार,
तजियेगा रूप गिरगिट।।

३४

भैसा

भैंसा ताकतवर पशु,
करियेगा उपयोग।
बोझा ढोने के लिए,
इसका करें प्रयोग।।
इसका करें प्रयोग,
पर्यावरण सुधार तब।
पर्यावरण खराब,
धुंआ उगलते यान जब।।
अनेकांत कविराय,
सभी जन सोचें ऐसा।
कृषि प्रधान हो नीत,
बचेगा तब ही भैंसा।।

३५

सूकर

सूकर सीधा सरल पशु,
करे गंदगी साफ।
स्वान फ्ल्यू से बचने को,
समझें मनुष सराफ।।
समझें मनुष सराफ,
छोड़िये इनको वन मे।
इन्हें मारना पाप,
सोचिये अपने मन में।।
अनेकांत कविराय,
बिना वन जीना दूभर।
चलो लगाए पेड़,
बचेगा तब ही सूकर।।

३६

शेर

शेर सिंह और वाघ,
जंगल के वनराज।
सिंह अशोक प्रतीक,
भारत का सरताज।।
भारत का सरताज,
पर रहवास तो वन में।
वन का हो विस्तार,
मानव सोचले मन में।
अनेकांत कविराय,
करिये ना विल्कुल देर।
वन रक्षा वृत धार,
बचाओ अपने शेर।।

३७

चूहा

चूहा गणपति यान रे,
जानत सब संसार।
फिर चूहा क्यों मारकर,
हिंसा करते यार।।
हिंसा करते यार,
बस थोड़ा खाए अन्न।
विवेकशील तो हम,
रखें संभालकर अन्न।।
अनेकांत कवि राय,
करिए न ऊहा पूहा।
जब ज्यादा नुकशान,
पकड़ बाहर कर चूहा।।

३८

वानर

वानर महिमा तो सखे,
शब्द लिखी ना जाय।
हनुमत वीरा वंश से,
सब जग गौरव पाय।।
सब जग गौरव पाय,
आज हम सब कुछ भूलें।
वन सब रहे उजाड़,
तभी सब सांसें फूलें।।
अनेकांत कवि राय,
मानव बने ना पामर।
वन को करे समृद्ध,
बचेगा तब ही वानर।।

३९

बैल

कृषि नीति सम्पन्न हो,
तभी बचेगा बैल।
वरना खेती मे क्रषक,
होता हरदम फैल।।
होता हरदम फैल,
दया उसपर कुछ कीजे।
आर्थिक नीति लाभ ,
अरे कुछ उसको दीजे।
‘अनेकांत’कवि कहत,
कहते ज्ञानी गुणी ऋषि।
बहु उपयोगी बैल,
जिसके बिन न होय कृषि।।

४०

भैंसी

भैंसी पालन कीजिये,
जिससे पुण्य अपार।
दूध दही घृत देकर,
करती है उपकार।।
करती है उपकार,
तभी गौवंश बचेगा।
धन सम्पन्न कृषक,
कृषि का कार्य बड़ेगा।।
‘अनेकांत,कवि कहत,
बनाय नीति अब ऐसी।
रुके माँस निर्यात,
बचेगी तब ही भैंसी।।

४१

बकरी

बकरी भी गौवंश का,
सीधा साधा जीव।
दया भाव मनमे जगा ,
बनियेगा संजीव।।
बनियेगा संजीव,
हमारा भाव यही बस।
शाकाहार प्रचार,
घोलिए जीवन मे रस।।
‘अनेकांत’कवि कहत,
भरिये पुण्य की गागरी।
चलो बचाएँ आज,
गाय भैंस संग बकरी।।

४२

मकड़ी

अज्ञानी होती मकड़ी,
तभी गँवाती जान।
खुद को जाला बुन रहा,
मनुष बना नादान।।
मनुष बना नादान,
सीखिये मकड़ी से भी।
शिल्प कला बेजोड़,
समझिये उससे ये भी।।
अनेकांत कवि कहत,
अरे मानव तू ज्ञानी।
इन कीटों को मार,
क्यों बनता है अज्ञानी।।
४३
मच्छर-मक्खी

मच्छर मक्खी आदि सब,
छोटे छोटे कीट।
केवल जीवन जी रहे,
मानव इनसे ढीट।।
मानव इनसे ढीट,
गंदगी क्यों फैलाए।
स्वच्छ देश अभियान अरे
क्यों नही चलाए।।
अनेकांत कवि कहत,
रोग सभी छू मंतर
शहर गाँव रख स्वच्छ,
न होंगे मक्खी मच्छर।।

४४

भालू

भालू मस्त मिजाज पशु,
कृपा पाय श्रीराम।
बंदर भालू साथ मिल,
कियेअनोखे काम।।
किये अनोखे काम,
आज रोशन सब जग मे।
रावण अहं परास्त,
विजय मिली तभी रण मे।।
अनेकांत कवि राय,
कलुष मन मानव चालू।
वन उजाड़ गुणगाय,
पर वन विना ना भालू।।

४५

सेही चील गिद्ध बाज

सेही चील गिद्ध बाज,
छोटे छोटे जीव।
जंगल की शोभा यही,
प्राणी मन संजीव।।
प्राणी मन संजीव,
प्रीत मन मे हो ऐसी।
दया भाव अभिभूत,
प्रभु की भक्ति हो जैसी।।
अनेकांत कवि राय,
मार्ग सत्य एक ये ही
मिलकर सभी बचांय,
बाज गिद्ध चील सेही।।

राजेन्द्र’अनेकांत’
बालाघाट दि.११-०२-१७

700 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
एक लड़का,
एक लड़का,
हिमांशु Kulshrestha
आवारगी मिली
आवारगी मिली
Satish Srijan
💐प्रेम कौतुक-341💐
💐प्रेम कौतुक-341💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
जिंदगी जब जब हमें
जिंदगी जब जब हमें
ruby kumari
3309.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3309.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
* पावन धरा *
* पावन धरा *
surenderpal vaidya
शाम हो गई है अब हम क्या करें...
शाम हो गई है अब हम क्या करें...
राहुल रायकवार जज़्बाती
गणतंत्र दिवस की बधाई।।
गणतंत्र दिवस की बधाई।।
Rajni kapoor
रिश्ते
रिश्ते
Ram Krishan Rastogi
"पवित्रता"
Dr. Kishan tandon kranti
धरती के सबसे क्रूर जानवर
धरती के सबसे क्रूर जानवर
*Author प्रणय प्रभात*
पहला श्लोक ( भगवत गीता )
पहला श्लोक ( भगवत गीता )
Bhupendra Rawat
प्रकृति वर्णन – बच्चों के लिये एक कविता धरा दिवस के लिए
प्रकृति वर्णन – बच्चों के लिये एक कविता धरा दिवस के लिए
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
ख़ामोशी से बातें करते है ।
ख़ामोशी से बातें करते है ।
Buddha Prakash
झूला....
झूला....
Harminder Kaur
दिल के टुकड़े
दिल के टुकड़े
Surinder blackpen
जग की आद्या शक्ति हे ,माता तुम्हें प्रणाम( कुंडलिया )
जग की आद्या शक्ति हे ,माता तुम्हें प्रणाम( कुंडलिया )
Ravi Prakash
तेरी यादों के आईने को
तेरी यादों के आईने को
Atul "Krishn"
नज़र बूरी नही, नजरअंदाज थी
नज़र बूरी नही, नजरअंदाज थी
संजय कुमार संजू
आसमाँ .......
आसमाँ .......
sushil sarna
🌷मनोरथ🌷
🌷मनोरथ🌷
पंकज कुमार कर्ण
बीन अधीन फणीश।
बीन अधीन फणीश।
Neelam Sharma
"दोस्ती का मतलब"
Radhakishan R. Mundhra
भ्रष्ट होने का कोई तय अथवा आब्जेक्टिव पैमाना नहीं है। एक नास
भ्रष्ट होने का कोई तय अथवा आब्जेक्टिव पैमाना नहीं है। एक नास
Dr MusafiR BaithA
तमाशा जिंदगी का हुआ,
तमाशा जिंदगी का हुआ,
शेखर सिंह
तेरी वापसी के सवाल पर, ख़ामोशी भी खामोश हो जाती है।
तेरी वापसी के सवाल पर, ख़ामोशी भी खामोश हो जाती है।
Manisha Manjari
क्या हुआ जो मेरे दोस्त अब थकने लगे है
क्या हुआ जो मेरे दोस्त अब थकने लगे है
Sandeep Pande
हम तो फ़िदा हो गए उनकी आँखे देख कर,
हम तो फ़िदा हो गए उनकी आँखे देख कर,
Vishal babu (vishu)
“See, growth isn’t this comfortable, miraculous thing. It ca
“See, growth isn’t this comfortable, miraculous thing. It ca
पूर्वार्थ
वक्त तुम्हारा साथ न दे तो पीछे कदम हटाना ना
वक्त तुम्हारा साथ न दे तो पीछे कदम हटाना ना
VINOD CHAUHAN
Loading...