“———————————————— आभा दिखे सुनहरी ” !!
घूँघट पट से झांक रही हो , नज़रें संग भेद भरी !
चेहरे पर रेखा चिन्ता की , छाई है अब गहरी !!
परदे के पीछे से चौकस , रहना कठिन बड़ा है !
आज चतुरता मौन लिये सी , बनी सजग अब प्रहरी !!
दामन उम्मीदों का थामे , आस लिये सहमी सी !
लक्ष्य साधने को आतुरतम , अँखियाँ जानो लहरी !!
सजधज मन भाती है ऐसी , नहीं आवरण चाहें !
रूप दमकता कुन्दन जैसा , आभा दिखे सुनहरी !!
बड़े ध्यान से कान लगाकर , आहट पा लेती हो !
भेद छुपाना लगे कठिन हैं , बड़ी सयानी ठहरी !!
कभी कनखियों से बतियाती , बोल धरे अधरों पर !
लदी नाज़ नखरों से ऐसी , मौन हुई स्वर लहरी !!
खूब लुभाना सीखा तुमने , सबके सब कायल हैं !
लुटने वाले अर्ज़ न करते , न कोउ चढ़े कचहरी !!!
बृज व्यास