दर्द जब भी यहाँ रुलाते हैं
दर्द जब भी यहाँ रुलाते हैं
आस आँसू हमें बँधाते हैं
ये सितारे हमारी’ किस्मत के
नाच कितना हमें नचाते हैं
हम हँसी के हसीन परदे में
गम के पैबंद को छुपाते हैं
आँधियों से जो बुझ नहीं पाते
फूँक से वो दिये बुझाते हैं
होना पतझार भी जरुरी है
हम तभी तो बहार पाते हैं
पूछिये मत कि दोस्ती में भी
हम दगा किस तरह पचाते हैं
बैंक रिश्तों का है मगर खाली
धन यहाँ तो बहुत कमाते हैं
हम यहाँ हाथ खाली आये थे
लौट कर भी फकीर जाते हैं
फूल से ‘अर्चना ‘ यहाँ रिश्ते
बोझ हम ही इन्हें बनाते हैं
डॉ अर्चना गुप्ता