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19 Nov 2021 · 2 min read

कल्प अध्यात्म: जीवन मुक्त गीता….

जीवन मुक्त गीता श्री, दत्तात्रेय उचार।।
करहिं सरल रुपांतरण, कल्प मंदमति धार।।

वेदांत सार सद्गुरु कहें, सहज सुबोध स्वरूप।
ब्रह्म जीव एकत्व है, सम्यक रूप अनूप।।

देह बुद्धि आसक्तिन भारी।
तजहिं मुक्ति हित तन नरनारी।।
मरहिं शरीर मुक्त हो प्राणा।
कूकर शूकर एक समाना।।१।।

सकल जीव में ब्रह्म विराजे।
कण कण में भगवत लख पावे।।
जीते जी भव से तर जावे।
मानव जीवन-मुक्त कहावे।।२।।

जस सूरज ब्रह्मांड प्रकाशित।
चिदानंद जीवों में व्यापित।।
चंद्र एक प्रतिबिंब अनेका।
विविध जलाशय विविधहिं देखा।।३।।

तस अद्वेत आत्मा एका।
देह अनेक रूप में एका।।
आत्मज्ञान जो नर पा जावे।
मानव जीवन-मुक्त कहावे।।४।।

भेद-अभेद से ब्रह्म परे हैं।
एकहि रूप अनेक धरे हैं।।
वो एक तभी तो भेद परे।
घर रूप अनेक अभेध परे।।५।।

पंचतत्व निर्मित यह काया।
नभ से ऊॅंचा मद भरमाया।।
कर्ता मत बन फल न चखना।
सत्चिदानंद नाम ही रटना।।६।।

ध्यान से मन एकाग्र करेगा।
व्यसनों का परित्याग करेगा।।
वही स्थिर अद्वैत रहेंगा।
जीवन मुक्त संसार कहेगा।।७।।

शोक मोह से मुक्ति पाना।
यथा शरीर करम कर जाना।।
शुभ अशुभ भाव परित्याग करेगा।
जीवन मुक्ति का सार गहेगा।।८।।

इक शास्त्र कर्म का भान रहा।
दूजा कोई नहीं ज्ञान रहा।।
सत्कर्म ही ब्रह्म समान रहे।
जीवन मुक्ति कवि सार कहे।।९।।

चिन्मय हृदय आकाश बसे।
हर जीव में बस इक ब्रह्म बसे।।
अजर अमर अविनाश आत्मा।
शिव स्वरूप बसे परमात्मा।।१०।।

प्राणों में जीवात्म स्वरूपा।
शिव अनादि सब में इक रूपा।
सकल जीव है बस अविनाशी।
बैर रहित हो जाओ साखी।।११।।

सकल विश्व का रूप आत्मा।
सद्गुरु रूपा दिव्य आत्मा।।
है चैतन्य रूप आकाशा।
मलिन न होय करहिं सुप्रकाशा।।१२।।

कल अरु आज काल दोउ एका।
एक जान सत् बुद्धि विवेका।।
मन करि सोsहम भाव विलीना।
जीवन मुक्त कहाय प्रावीना।।१३।।

उच्च ध्यान जब योग लगावे।
चैतन्य दरश योगी पा जावे।।
मनहि शून्य लय विलय करावे।
साधक जीवन मुक्त कहावे।।१४।।

मनहि ध्यान में लय करे, निशदिन कर अभ्यास।
बंधन-मुक्ति की सत्ता तजें, ज्ञानी कर विश्वास।।१५-१६।।

वैभव तज एकांत वासनी।
रस आनंद चखे ब्रह्मज्ञानी।।
साधक ध्यानहि सोहं रूपा।
चित्त प्रकाशित सूर्य स्वरूपा।।१७।।

आत्मा को शिव रूप जाने।
निज शरीर ब्रह्माण्ड समाने।।
करहि मोह चिदाकाश विलीना।
जीवन मुक्त रहे सकल कुलीना।।१८।।

जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति अवस्था।
सोऽहं भाव रहे मगन मस्ता।।
सोऽहं भाव धर ब्रह्म कृपाला
रहे विद्वान सूत्र मणि माला।।१९-२०।।

संकल्प विकल्प भाव मन धारे।
भेदभाव हैं मन के सारे।।
जो मनु मन के पारहि जावे।
जीवन मुक्ति सार वही पावे।।२१।।

दत्तात्रेय रचित जीवनमुक्त गीता का सार संक्षेप हिंदी में रूपांतरण करने का एक मंद मती प्रयास
✍’कल्प’ अरविंद राजपूत

Language: Hindi
Tag: गीत
1146 Views
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