××× आँसुओं का राज़ ×××
लघुकथा: आँसुओं का राज़
// दिनेश एल० “जैहिंद”
एक दिन सुबह-सुबह राजेश अपने बाल-बच्चों सहित
अपने माता-पिता के आगे खड़ा था ।
उनके पैर छुए और उनको निहारते हुए एक टूक ही कहा –
“मेरी नौकरी चली गई ।”
पिछले सात सालों से राजेश अपने बूढ़े माता-पिता को
अकेले छोड़कर अमेरिका में परिवार सहित रह रहा था ।
इस बीच उसने कभी माँ-बाप की सुध नहीं ली,
कभी याद भी आए तो सिर झटक दिया ।
आज वही राजेश माँ-बाप के आगे निश्शब्द व असहाय खड़ा था ।
माँ ने एक शब्द भी नहीं बोला, गुमसुम उसे निहारते हुए रोती रही ।
राजेश ने देखा, माँ की आँखों से झर-झर आँसू बह रहे थे ।
मगर राजेश ने उन आँखों के आँसुओं का राज़ समझ नहीं पाया ।
वे मिलन में खुशी के आँसू थे या बीते बिछोह की पीड़ा के ?
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दिनेश एल० “जैहिंद”
05. 10. 2017