हाल-ए-दिल जब छुपा कर रखा, जाने कैसे तब खामोशी भी ये सुन जाती है, और दर्द लिए कराहे तो, चीखों को अनसुना कर मुँह फेर जाती है।
ये ज़िंदगी आस कुछ यूँ जगाती है, की राख बना मुझे उड़ा जाती है, किनारा दिखा कर तूफानों में, साहिलों पर नाव डूबा जाती है। उजड़े कारवाँ के मुसाफिरों को,...
Hindi · Featuring In The Upcoming Nove · कविता · मनीषा मंजरी